शरजील इमाम की कैद के 2015 दिन: JNU में एक्टिविस्ट अफरीन फातिमा की हुंकार, “हमारी चुप्पी हमारा अपराध”| UAPA

Published on: 08-08-2025
Sharjeel imam arrest

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के साबरमती ढाबा पर छात्रों ने शोधकर्ता और मुस्लिम कार्यकर्ता शरजील इमाम की गिरफ्तारी के 2,015 दिन (5 साल से अधिक) पूरे होने पर एक सभा आयोजित की। फ्रेटरनिटी मूवमेंट की नेता अफरीन फातिमा ने अपने जोशीले भाषण में शरजील के “संवैधानिक” और “प्रगतिशील” स्पीच को defend नहीं कर पाने को छात्र समुदाय की विफलता बताया। उन्होंने कहा, “हमारी चुप्पी हमारी शर्मिंदगी है। सरकार और न्यायपालिका से पहले हमें अपनी नाकामी पर विचार करना होगा।” फातिमा ने छात्रों से शरजील के जेल से लिखे लेखों को पढ़ने और उनके साथ एकजुटता दिखाने की अपील करते हुए कहा कि वह तिहाड़ जेल में रहते हुए भी मुस्लिम अधिकारों और आनुपातिक प्रतिनिधित्व की वकालत कर रहे हैं।

शरजील इमाम को जनवरी 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में उनकी कथित भूमिका के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था। अफरीन फातिमा ने उनके 5 दिसंबर, 2019 के चक्का जाम के आह्वान को संवैधानिक विरोध का तरीका बताया, जिसे “तर्कहीन” और “पागलपन” भरे ढंग से आपराधिक ठहराया गया। उन्होंने बाबरी मस्जिद फैसले के खिलाफ शरजील द्वारा आयोजित एकमात्र विरोध का जिक्र करते हुए उनकी शायरी उद्धृत की: “मेरी ज़ुबान पे शिकवे अहले सितम नहीं, मुझको जगा दिया ये एहसान कम नहीं।” फातिमा ने शाहीन बाग आंदोलन को शरजील की ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया, जहां उन्होंने मुस्लिम समुदाय की आकांक्षाओं को न केवल आवाज़ दी, बल्कि “देश के सबसे शत्रुतापूर्ण शासन” के खिलाफ प्रतिरोध का नेतृत्व किया। उन्होंने JNU समुदाय की आलोचना की, जो शरजील को मीडिया और सत्ता की बदनामी के दौरान अकेला छोड़ने में सबसे आगे था।

अफरीन फातिमा ने कहा कि शरजील की 5 साल से अधिक की कैद केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि युवा मुस्लिम समुदाय की आवाज़ को कुचलने का सुनियोजित प्रयास है। उन्होंने जोर दिया, “वह मुसलमानों के दर्द की तर्जुमानी कर रहे थे, और इसीलिए जेल में हैं।” फातिमा ने JNU समुदाय पर आरोप लगाया कि जब शरजील को “फ्रिंज” ठहराया गया, तो यही समुदाय उन्हें अस्वीकार करने में सबसे आगे था। उन्होंने छात्रों से सवाल किया, “क्या हमने शरजील के जेल से लिखे लेख पढ़े हैं? क्या हम उनके लिए पर्याप्त कर रहे हैं, जो हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं?” उन्होंने शरजील को “हमारे समय के सबसे बेहतरीन बुद्धिजीवियों” में से एक बताते हुए उनकी अडिग प्रतिबद्धता की सराहना की, जो तिहाड़ में भी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। फातिमा ने चेतावनी दी कि शरजील का समर्थन न करना समाज की सामूहिक हार है।

सभा के समापन पर फातिमा ने शरजील की आवाज़ को बुलंद करने की अपील करते हुए कहा कि उनकी लड़ाई हम सबकी लड़ाई है। उन्होंने चक्का जाम को संवैधानिक बताते हुए इसे “फ्रिंज” मानने को तर्क की हार करार दिया। फातिमा ने कहा कि शरजील मुस्लिम समुदाय की आकांक्षाओं का प्रतीक हैं और एक ऐसी आवाज़ हैं जो क्रूर शासन के खिलाफ बिना डरे खड़ी है। उन्होंने बड़े षड्यंत्र मामले में शरजील को अलग-थलग करने को “नैतिक पतन” बताया। साबरमती ढाबा की यह सभा शरजील और उमर खालिद जैसे कार्यकर्ताओं के बलिदान को अपनाने की जिम्मेदारी का गंभीर अनुस्मारक थी। फातिमा के शब्दों ने छात्रों को शरजील के लेखों को पढ़ने, उनकी लड़ाई को समझने और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने के लिए प्रेरित किया।

Sharjeel Imam

जानिये पूरा मामला

28 जनवरी 2020 को, शरजील इमाम ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के आरोप में, आत्मसमर्पण करने से पहले अपने फेसबुक पर लाइव होने के दौरान अपने पैतृक गांव काको में दिल्ली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उन पर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया गया था । गिरफ्तारी के बाद, उन्हें असम ले जाया गया और गुवाहाटी सेंट्रल जेल में रखा गया ।

29 जुलाई 2020 को दिल्ली की एक अदालत ने इमाम के कथित भड़काऊ भाषण से जुड़े मामले में उनके ख़िलाफ़ समन जारी किया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने यूएपीए के तहत इमाम के ख़िलाफ़ दायर आरोपपत्र देखने के बाद उन्हें 1 सितंबर 2020 को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया। अदालत ने कोरोनावायरस महामारी के चलते यह फ़ैसला लिया और कहा कि अगर इमाम की शारीरिक उपस्थिति संभव नहीं है, तो उन्हें वीडियो-कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए पेश किया जा सकता है। 

अप्रैल 2022 में, दिल्ली की एक जिला अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों में एक “बड़ी साजिश” का आरोप लगाने वाले एक मामले में इमाम को ज़मानत देने से इनकार कर दिया , जिसमें यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के तहत आरोप शामिल थे, यह कहते हुए कि आरोप “प्रथम दृष्टया सत्य” थे। [ 32 ] [ 33 ] सितंबर 2020 में, इमाम को एक मामले में ज़मानत दी गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया के पास एक देशद्रोही भाषण दिया था। 

मई 2024 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में दिए गए भाषणों से संबंधित मामले में इमाम को ज़मानत दे दी थी। हालाँकि, वह 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के आरोपों से जुड़े एक बड़े षड्यंत्र के कथित मामले में जेल में ही है।

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