E20 Fuel Policy पर PIL खारिज – नई दिल्ली, 1 सितंबर 2025 – भारत की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को एक अहम जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार की E20 पेट्रोल नीति को चुनौती दी गई थी। इस नीति के तहत अब पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल अनिवार्य रूप से मिलाया जा रहा है। याचिका में मांग की गई थी कि पुराने वाहनों के लिए इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल (E0) या कम मिश्रण वाले विकल्प (E10) उपलब्ध कराए जाएं। हालांकि, चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि यह मामला नीतिगत है और सरकार के ऊर्जा एवं पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप है।
PIL की पृष्ठभूमि और याचिकाकर्ता की दलीलें
यह याचिका अगस्त 2025 में अधिवक्ता अक्षय मल्होत्रा द्वारा दाखिल की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि अप्रैल 2023 से पहले निर्मित अधिकांश वाहन, यहाँ तक कि कुछ BS-VI मॉडल भी, E20 पेट्रोल के साथ पूरी तरह संगत नहीं हैं। ऐसे में लाखों वाहन मालिकों को मजबूरन ऐसा ईंधन खरीदना पड़ रहा है जो उनके इंजन के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
याचिका में उपभोक्ताओं के सूचित विकल्प के अधिकार (Right to Informed Choice) का हवाला देते हुए कहा गया कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के तहत हर नागरिक को उपयुक्त विकल्प मिलना चाहिए। इसमें मांग की गई थी कि:
- सभी पेट्रोल पंपों पर E0 (शुद्ध पेट्रोल) उपलब्ध हो।
- ईंधन डिस्पेंसर पर स्पष्ट रूप से इथेनॉल की मात्रा का लेबल हो।
- गैर-संगत वाहनों पर E20 के प्रभाव का राष्ट्रीय अध्ययन कराया जाए।
याचिका का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पुराने वाहनों पर E20 उपयोग से औसतन 6 प्रतिशत ईंधन दक्षता में कमी आ सकती है।

E20 पेट्रोल नीति: उद्देश्य और सरकारी दृष्टिकोण
भारत सरकार ने 2014 से Ethanol Blended Petrol (EBP) Programme को बढ़ावा दिया है। इसके मुख्य उद्देश्य हैं –
- कच्चे तेल पर आयात निर्भरता कम करना,
- विदेशी मुद्रा की बचत करना,
- और पर्यावरणीय प्रदूषण को घटाना।
मूल रूप से सरकार का लक्ष्य 2030 तक E20 लागू करना था, लेकिन इसे आगे बढ़ाकर 2025 कर दिया गया।
पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार, इस कार्यक्रम से 2014-15 से जुलाई 2025 तक:
- किसानों को लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है।
- करीब 1.44 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बचत हुई है।
- और 736 लाख मीट्रिक टन CO2 उत्सर्जन में कमी आई है।
जून 2022 में देश ने 10% इथेनॉल मिश्रण (E10) का लक्ष्य हासिल कर लिया था, जबकि फरवरी 2025 तक यह औसत 19.6% तक पहुंच गया। सरकार का दावा है कि E20 से न सिर्फ पर्यावरणीय लाभ होंगे बल्कि बेहतर वाहन प्रदर्शन भी मिलेगा।
वाहनों पर नकारात्मक प्रभाव: याचिका के तर्क

याचिकाकर्ता का कहना था कि उच्च इथेनॉल मिश्रण वाले पेट्रोल से पुराने वाहनों में कई समस्याएँ हो रही हैं:
- इंजन के धातु हिस्सों में जंग लगना।
- ईंधन लाइनों, प्लास्टिक और रबर पार्ट्स को नुकसान।
- ईंधन दक्षता में 3 से 6 प्रतिशत तक गिरावट।
- मरम्मत खर्च और बीमा दावों में कठिनाई।
उन्होंने अमेरिका और यूरोपीय संघ का उदाहरण दिया, जहाँ E0 पेट्रोल उपलब्ध रहता है और ब्लेंडेड ईंधन पर स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य है। भारत में पारदर्शिता की कमी को उन्होंने संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 19(1)(g), 21 और 300A) का उल्लंघन बताया।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और फैसला
1 सितंबर की सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता फरासत ने दलील दी कि याचिकाकर्ता E20 के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि उपभोक्ताओं के लिए विकल्प चाहते हैं। उन्होंने कहा, “E20 नीति तर्कसंगत है, लेकिन पुराने वाहनों के लिए E10 विकल्प का न होना उपभोक्ताओं के अधिकारों का हनन है।”
वहीं, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह याचिका विदेशी लॉबी के प्रभाव में दायर की गई है और यह किसानों एवं देश की ऊर्जा सुरक्षा के खिलाफ है। उन्होंने सवाल किया, “क्या विदेशी ताकतें भारत को तय करेंगी कि हम कौन सा ईंधन इस्तेमाल करें?”
अदालत ने अंततः कहा कि नीतिगत निर्णयों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप उचित नहीं है और PIL को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस गवई ने टिप्पणी की कि यह निर्णय देश के पर्यावरणीय और ऊर्जा लक्ष्यों से जुड़ा हुआ है।
सरकार और उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद सरकार ने इसे एथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम की बड़ी जीत बताया।
- पेट्रोलियम मंत्रालय ने कहा कि ब्राजील जैसे देशों में E27 तक सफलतापूर्वक लागू है, और भारत भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।
- SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) ने कहा कि E20 सुरक्षित है, लेकिन 2-4% तक माइलेज पर असर हो सकता है।
- ऑटोमोबाइल कंपनियों ने दावा किया कि नए वाहन E20 संगत हैं और इंजन ट्यूनिंग से माइलेज पर असर कम किया जा सकता है।
यूनियन रोड ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि, “इथेनॉल मिश्रण से प्रदूषण कम हुआ है और अब तक कोई गंभीर शिकायत सामने नहीं आई है। यह पेट्रोलियम लॉबी द्वारा फैलाया गया भ्रम है।”
उपभोक्ता चिंताएँ और आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकार की E20 नीति को मजबूती मिली है, लेकिन वाहन मालिकों की चिंताएँ खत्म नहीं हुई हैं। पुराने वाहन चालकों को अब E20 का ही उपयोग करना पड़ेगा, जिससे मरम्मत लागत और रखरखाव खर्च बढ़ सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को उपभोक्ता हित में तीन कदम उठाने होंगे:
- ईंधन डिस्पेंसर पर इथेनॉल की स्पष्ट लेबलिंग।
- उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान।
- पुराने वाहनों पर E20 के प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन।
भविष्य में, भारत उच्च इथेनॉल मिश्रण (E27 और उससे अधिक) की ओर बढ़ सकता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, E20 से हर साल लगभग 30,000 करोड़ रुपये की बचत होगी और किसानों को स्थायी आय का स्रोत मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत की सतत ऊर्जा यात्रा को गति देता है और सरकार की पर्यावरणीय नीतियों को वैधानिक समर्थन प्रदान करता है। हालांकि, उपभोक्ता संरक्षण और पारदर्शिता को लेकर सवाल बने रहेंगे। यह स्पष्ट है कि E20 से प्रदूषण घटेगा और आयात निर्भरता कम होगी, लेकिन वाहन संगतता और उपभोक्ता अधिकार जैसे मुद्दों पर और गहन विमर्श की आवश्यकता है।
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