Prime Minister Modi ने 31 अगस्त 2025 को चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए सात वर्षों बाद चीन की धरती पर कदम रखा। यह दौरा 2018 के बाद उनका पहला चीन दौरा है, जो 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद तनावग्रस्त संबंधों में सुधार का संकेत देता है। SCO शिखर सम्मेलन, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान सहित 10 सदस्य देश शामिल हैं, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है। इस दौरे के दौरान पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं कीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ के बीच यह दौरा भारत के लिए रणनीतिक महत्व का है, जो अमेरिका पर निर्भरता कम करने और वैकल्पिक साझेदारियों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह दौरा भारत-चीन संबंधों में ‘डिप्लोमैटिक थॉ’ का प्रतीक है, जो वैश्विक तनावों के बीच भारत को आर्थिक स्थिरता प्रदान कर सकता है।
दौरे का पृष्ठभूमि और संदर्भ
भारत-चीन संबंध 2020 के गलवान संघर्ष के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इसके बाद सीमा पर तनाव बढ़ा, जिसने व्यापार, निवेश और यात्रा को प्रभावित किया। हालांकि, अक्टूबर 2024 में रूस के काजान में BRICS शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और शी जिनपिंग की बैठक ने संबंधों में सुधार की शुरुआत की। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बैठक के बाद सीमा पर सैनिकों की वापसी और गश्त समझौते हुए, जिससे पूर्वी लद्दाख में शांति बहाल हुई। अगस्त 2025 में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा ने इस प्रक्रिया को गति दी, जहां सीमा मुद्दों पर विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता हुई।
यह दौरा अमेरिकी टैरिफ संकट के बीच आया है, जहां ट्रंप ने रूसी तेल खरीद पर भारत को 50% टैरिफ लगाया, जो भारत के $86.5 बिलियन के अमेरिकी निर्यात को प्रभावित करेगा। गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इससे भारत ने गैर-पश्चिमी गठबंधनों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। SCO शिखर सम्मेलन, जो चीन की मेजबानी में हो रहा है, में 20 से अधिक देशों के नेता शामिल हैं, और यह भारत को केंद्रीय एशिया के साथ सुरक्षा और आर्थिक सहयोग बढ़ाने का मंच प्रदान करता है। पीएम मोदी ने जापान यात्रा के दौरान योमियुरी शिम्बुन को दिए साक्षात्कार में कहा, “विश्व अर्थव्यवस्था की अस्थिरता के बीच भारत और चीन जैसे दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का सहयोग वैश्विक स्थिरता के लिए आवश्यक है।” यह बयान दौरे के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करता है।
सीमा शांति और सुरक्षा लाभ
पीएम मोदी के दौरे से भारत को सबसे बड़ा लाभ सीमा पर शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में मिलेगा। 2020 के संघर्ष के बाद LAC पर तनाव ने हजारों सैनिकों को तैनात रखा, जिससे रक्षा व्यय बढ़ा। MEA के अनुसार, अक्टूबर 2024 के समझौते के बाद डेमचोक और डेपसांग जैसे बिंदुओं से सैनिक हटाए गए, और अब शांति बनी हुई है। शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी-शी वार्ता में दोनों नेताओं ने ‘निष्पक्ष और स्वीकार्य सीमा समाधान’ पर प्रतिबद्धता जताई। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (CFR) की रिपोर्ट के मुताबिक, यह दौरा सीमा विवाद को पृष्ठभूमि में धकेलने में मदद करेगा, जिससे भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए आर्थिक फोकस बढ़ा सकेगा।
इसके अलावा, SCO के माध्यम से भारत को केंद्रीय एशिया में आतंकवाद और सुरक्षा चुनौतियों पर सहयोग मिलेगा। रूस और चीन के साथ साझेदारी से भारत अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर अपनी चिंताओं को मजबूती से उठा सकेगा। सीएनएन की रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा कि सीमा स्थिरता से भारत को हिमालयी क्षेत्र में सैन्य संसाधनों को पुनर्वितरण करने का अवसर मिलेगा, जो ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों के लिए फायदेमंद होगा। कुल मिलाकर, यह लाभ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने उल्लेख किया है।
आर्थिक और व्यापारिक लाभ

मोदी के दौरे से भारत को आर्थिक क्षेत्र में व्यापक लाभ होंगे, खासकर अमेरिकी टैरिफ के बीच। भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार 2024-25 में $118 बिलियन तक पहुंच गया, लेकिन $99.2 बिलियन का व्यापार घाटा चिंता का विषय है। CNBC की रिपोर्ट के अनुसार, दौरे के दौरान सीधे उड़ानों की बहाली, सीमा व्यापार के तीन स्थानों पर पुनः शुरूआत, और चीनी निवेश नियमों में ढील पर चर्चा हुई। चीन ने उर्वरक, दुर्लभ मिट्टी खनिजों और टनल बोरिंग मशीनों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का वादा किया, जो भारत की EV और इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण है।
निति आयोग के अनुसार, भारत का EV लक्ष्य 2030 तक 30% है, लेकिन दुर्लभ मिट्टी पर चीन पर निर्भरता 80% से अधिक है। दौरे से यह निर्भरता कम हो सकती है। इसके अलावा, ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति के तहत भारत को चीनी कंपनियों से निवेश आकर्षित करने का मौका मिलेगा। रॉयटर्स के अनुसार, SCO के माध्यम से भारत केंद्रीय एशिया के बाजारों तक पहुंच बढ़ा सकेगा, जो ऊर्जा सुरक्षा के लिए फायदेमंद होगा। पीएम मोदी ने कहा, “स्थिर भारत-चीन संबंध क्षेत्रीय और वैश्विक समृद्धि के लिए सकारात्मक प्रभाव डालेंगे।” ईकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में अनुमान है कि इससे भारत का GDP विकास 6.5% पर स्थिर रहेगा, भले ही अमेरिकी टैरिफ प्रभावित करें।
SCO और बहुपक्षीय सहयोग के लाभ
SCO सदस्यता भारत को क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने का मंच प्रदान करती है। लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, यह दौरा भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को मजबूत करेगा, जो अमेरिका या चीन पर निर्भरता से बचाता है। SCO के तियानजिन घोषणापत्र में बहुपक्षवाद और क्षेत्रीय स्थिरता पर जोर दिया गया, जिसमें भारत ने आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ावा दिया। ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में कहा गया कि मोदी का दौरा ‘ड्रैगन और एलीफेंट के नृत्य’ की नई शुरुआत करेगा, जो भारत को ग्लोबल साउथ में नेतृत्व प्रदान करेगा।
इसके अलावा, रूस के साथ ऊर्जा साझेदारी मजबूत होगी, जो अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच महत्वपूर्ण है। आउटलुक इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पुतिन के साथ बैठक से रक्षा और तेल खरीद पर लाभ मिलेगा। कुल मिलाकर, SCO से भारत को केंद्रीय एशिया में कनेक्टिविटी और व्यापार के नए अवसर मिलेंगे, जो BRICS के साथ मिलकर वैश्विक वित्तीय संस्थाओं में सुधार की दिशा में मदद करेंगे।
भारत-चीन संबंधों का भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रभाव

भारत-चीन संबंधों में सुधार का अमेरिका के साथ भारत के संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, खासकर ट्रंप प्रशासन के 50% टैरिफ के बीच। CNN की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी दबाव से भारत ने चीन के साथ आर्थिक जरूरतों को प्राथमिकता दी है, जिससे US-India साझेदारी पर सवाल उठे हैं। यह प्रभाव निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट है:
- रणनीतिक स्वायत्तता का मजबूतीकरण: भारत अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को बढ़ावा दे रहा है, जो अमेरिका पर निर्भरता कम करता है। गार्जियन की रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रंप के टैरिफ ने भारत को चीन और रूस की ओर धकेला है, जहां मोदी-शी-पुतिन की बैठकें वाशिंगटन को संकेत देती हैं कि भारत विकल्प तलाश रहा है। इससे US-India संबंधों में विश्वास की कमी हुई है, जैसा कि रॉयटर्स ने उल्लेख किया।
- Quad और इंडो-पैसिफिक रणनीति पर चुनौती: अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ काउंटरवेट के रूप में देखता है, लेकिन सुधारित भारत-चीन संबंध Quad (US, India, Japan, Australia) को कमजोर कर सकते हैं। अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के टैरिफ ने भारत को चीन के साथ सहयोग बढ़ाने पर मजबूर किया, जो US की इंडो-पैसिफिक रणनीति को प्रभावित करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत की US के साथ सुरक्षा सहयोग में कमी आ सकती है।
- आर्थिक निर्भरता का बदलाव: 50% टैरिफ से भारत के $81 बिलियन अमेरिकी निर्यात प्रभावित हो रहे हैं, जिससे चीन के साथ $118 बिलियन व्यापार को बढ़ावा मिला। टाइम मैगजीन की रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रंप की नीतियां भारत को चीन की ओर धकेल रही हैं, जहां दुर्लभ मिट्टी और EV कंपोनेंट्स जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा। इससे US-India व्यापार वार्ता जटिल हो गई है, और भारत BRICS जैसे मंचों पर अधिक सक्रिय हो रहा है।
- भू-राजनीतिक संतुलन: चाइना की नजर में, ट्रंप ने भारत को ‘रीकैलिब्रेट’ करने पर मजबूर किया है। स्टिमसन सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, यह भारत को US के बजाय चीन को विश्वसनीय साझेदार के रूप में देखने को प्रेरित कर सकता है। हालांकि, लोवी इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत US को लंबे समय का साझेदार मानता है, लेकिन वर्तमान तनाव से रूस-चीन के साथ संबंध मजबूत हो रहे हैं, जो US की वैश्विक स्थिति को कमजोर करेगा।
- दीर्घकालिक जोखिम: ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि यह तनाव US-India साझेदारी को ‘फ्री फॉल’ में ले जा सकता है, खासकर यदि ट्रंप की नीतियां जारी रहीं। भारत ने रूसी तेल खरीद जारी रखी है, जो US को नाराज कर रहा है, लेकिन चीन के साथ सहयोग से भारत वैश्विक बहुलवाद को बढ़ावा दे रहा है। कुल मिलाकर, यह प्रभाव भारत को मल्टी-पोलर एशिया में मजबूत बनाता है, लेकिन US के साथ संबंधों को तत्काल चुनौती देता है।
भारत-चीन-रूस निकटता का विश्व राजनीति पर प्रभाव

भारत, चीन और रूस के साथ निकटता बढ़ने से विश्व राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, जो बहुपक्षीयता को बढ़ावा देता है लेकिन पश्चिमी गठबंधनों को चुनौती भी देता है। फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के टैरिफ ने भारत को अमेरिका के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की ओर धकेल दिया है, जिससे US की इंडो-पैसिफिक रणनीति कमजोर हो रही है। यह प्रभाव निम्नलिखित बिंदुओं में दिखता है:
- मल्टी-पोलर विश्व व्यवस्था का मजबूत होना: भारत-चीन-रूस (RIC) त्रिपक्षीय सहयोग की बहाली से एक नई बहुपक्षीय व्यवस्था उभर रही है, जो अमेरिका-प्रधान विश्व को चुनौती देती है। न्यूजवीक की रिपोर्ट के अनुसार, रूस की RIC प्रस्तावना को चीन ने समर्थन दिया है, जो क्षेत्रीय शांति और वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा देगा। इससे ग्लोबल साउथ को मजबूत आवाज मिलेगी, जैसा कि ब्लूमबर्ग ने उल्लेख किया, लेकिन पुरानी अविश्वास (जैसे भारत-चीन सीमा विवाद) इसे अस्थायी बना सकता है।
- पश्चिमी प्रतिबंधों और युद्ध पर प्रभाव: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत और चीन रूसी तेल खरीद रहे हैं, जो पश्चिमी प्रतिबंधों को कमजोर कर रहा है। फॉक्स बिजनेस के अनुसार, ट्रंप ने भारत और चीन को रूस के साथ व्यापार के लिए निशाना बनाया है, लेकिन इससे रूस को आर्थिक सहारा मिल रहा है। सीएनबीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि यह सहयोग रूस को चीन पर निर्भरता बढ़ा रहा है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है, लेकिन SCO जैसे मंचों से वैश्विक संघर्षों (जैसे अफगानिस्तान, गाजा) पर संयुक्त दृष्टिकोण विकसित हो रहा है।
- इंडो-पैसिफिक और केंद्रीय एशिया पर असर: निकटता से चीन की इंडो-पैसिफिक प्रभाव बढ़ेगा, लेकिन भारत की भागीदारी से संतुलन बनेगा। फॉरेन पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (FPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, रूस-चीन गठजोड़ उत्तर कोरिया और ईरान को मजबूत कर रहा है, जो भारत-चीन तनाव को प्रभावित करेगा। हालांकि, लोवी इंस्टीट्यूट के अनुसार, यह भारत को रूस से दूर न करने का अवसर देता है, जो चीन के वर्चस्व को रोकेगा। केंद्रीय एशिया में SCO से ऊर्जा और सुरक्षा सहयोग बढ़ेगा, जो यूरोपीय संघ और अमेरिका की पहुंच को सीमित करेगा।
- आर्थिक और तकनीकी सहयोग का वैश्विक प्रभाव: BRICS और SCO के माध्यम से डी-डॉलरीकरण और नई मुद्रा प्रणाली पर चर्चा हो रही है, जो अमेरिकी वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती देगी। रॉयटर्स के अनुसार, रूस भारत-चीन के साथ त्रिपक्षीय वार्ता चाहता है, जो वैश्विक व्यापार को बदल सकता है। लेकिन द मॉस्को टाइम्स की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि रूस भारत-चीन संबंधों में अलग-थलग पड़ सकता है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (जैसे दुर्लभ मिट्टी) को प्रभावित करेगा।
- दीर्घकालिक जोखिम और संतुलन: ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के अनुसार, यह निकटता यूरोप-एशिया संबंधों को तनावपूर्ण बनाएगी, लेकिन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता से मध्यस्थता की भूमिका बढ़ेगी। हालांकि, द डिप्लोमैट की रिपोर्ट में कहा गया कि रूस-चीन सहयोग भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है, यदि मॉस्को बीजिंग का पक्ष ले। कुल मिलाकर, यह विश्व को मल्टी-पोलर बनाता है, लेकिन अमेरिका-चीन तनाव को बढ़ा सकता है, जैसा कि रैंड कॉर्पोरेशन ने उल्लेख किया।
वैश्विक स्थिरता और रणनीतिक लाभ

दौरे से भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करने का लाभ मिलेगा। ट्रंप के टैरिफ ने भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित किया, लेकिन यह दौरा भारत को ‘मल्टी-पोलर एशिया’ में संतुलन बनाने का अवसर देता है। अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी ने वांग यी से मुलाकात में कहा कि ‘सीमा शांति द्विपक्षीय विकास के लिए आवश्यक है।’ इससे भारत को यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर मध्यस्थ की भूमिका निभाने का मौका मिलेगा।
चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह दौरा SCO को ‘उच्च गुणवत्ता विकास’ की नई अवस्था में ले जाएगा, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत को तकनीकी हस्तांतरण और हरित ऊर्जा में सहयोग मिलेगा। द गार्जियन ने कहा कि यह ‘व्यावहारिक लाभ’ प्रदान करेगा, जैसे पर्यटन वीजा बहाली और सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
पीएम मोदी का चीन दौरा भारत के लिए बहुआयामी लाभों का स्रोत साबित हो रहा है। सीमा शांति से सुरक्षा मजबूत होगी, आर्थिक सहयोग से व्यापार घाटा कम होगा, और SCO से क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ेगा। अमेरिकी टैरिफ के बीच यह दौरा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को रेखांकित करता है, जो US संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। भारत-चीन-रूस निकटता से विश्व राजनीति मल्टी-पोलर हो रही है, लेकिन चुनौतियां बनी रहेंगी। हालांकि, पाकिस्तान के साथ चीन के संबंध और सीमा विवाद जैसे मुद्दे चुनौतियां बने रहेंगे, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘नई सामान्य’ की शुरुआत है। रॉयटर्स के अनुसार, स्थिर भारत-चीन संबंध वैश्विक शांति के लिए आवश्यक हैं।