POCSO से जुड़े एक मामले में जिला जज का लापरवाह रवैया राजस्थान हाईकोर्ट को इतना नागवार गुजरा कि न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी के साथ न्यायिक अधिकारी द्वारा पारित विवादित फैसलों की एक प्रति राजस्थान ज्यूडिशियल अकादमी के प्रभारी जज को भेजने का निर्देश दिया ताकि न्यायाधीश को जजमेंट राइटिंग का प्रशिक्षण दिया जा सके। Justice Ashok Kumar Jain की बेंच ने माना कि न्यायाधीश ने फैसला लिखने में लापरवाही बरतते हुए ‘कट, कॉपी और पेस्ट’ का तरीका अपनाया। अब एक स्पेशल लीव पेटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें हाईकोर्ट ने पॉक्सो कोर्ट (POCSO Court) में तैनात उस Judicial Officer के खिलाफ कठोर टिप्पणियां (Strictures) और प्रतिकूल टिप्पणियां (Adverse Remarks) की थीं।
सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच ने जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे द्वारा तर्क सुनाए गए एक विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) पर यह आदेश पारित किया।
मामला एक नाबालिग लड़की के बलात्कार (Rape) का है, जिसमें एक किशोर (Juvenile) पर आरोप लगाया गया था और आरोप था कि उसके पिता ने इस कृत्य को अंजाम दिया। बाद में यह तय किया गया कि किशोर को एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा। दोनों आरोपियों का मामला पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act), 2012 के तहत जिला न्यायाधीश के सामने आया। न्यायाधीश ने दोनों आरोपियों को दोषी ठहराया और एक ही दिन (20 जनवरी, 2024) में दोनों फैसले सुनाए, हालांकि मुकदमा अलग-अलग चला था। वयस्क आरोपी ने हाईकोर्ट में सजा को निलंबित (Suspension of Sentence) करने की मांग करते हुए अपील दायर की।

हाईकोर्ट ने ये कहा था
राजस्थान हाईकोर्ट (जस्टिस अशोक कुमार जैन की पीठ) ने सजा निलंबित करने से इनकार कर दिया और मामले को अक्टूबर में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। लेकिन हाईकोर्ट ने अपने आदेश में निम्नलिखित गंभीर अवलोकन (Observations) किए:
- हाईकोर्ट ने कहा कि अभिलेखों के अवलोकन से स्पष्ट है कि ट्रायल कोर्ट ने एक ही दिन में दो फैसले पारित किए, जो एक ही एफआईआर से उत्पन्न हुए थे लेकिन मुकदमे की प्रक्रिया अलग थी।
- हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, “ट्रायल जज ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और अपने कर्तव्य की उपेक्षा की है। उन्होंने पूरा फैसला नहीं लिखा, बल्कि ‘कट, कॉपी और पेस्ट’ की मेथडोलॉजी का इस्तेमाल किया, जो दर्शाता है कि वास्तव में फैसला संबंधित स्टेनोग्राफर/क्लर्क द्वारा लिखा गया है।”
- हाईकोर्ट ने आगे कहा, “फैसला तैयार होने के बाद, पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) ने इसे पढ़ने और सही करने का ध्यान नहीं रखा ताकि अप्रासंगिक पैराग्राफ हटाए जा सकें। यह दिखाता है कि ट्रायल जज जजमेंट राइटिंग के लिए समय देने के बजाय अन्य अप्रासंगिक कामों में व्यस्त थीं और फैसले को स्टेनोग्राफर या पी.ए. पर छोड़ रही थीं।”
- हाईकोर्ट ने एक न्यायाधीश के कर्तव्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उसे मामले के तथ्यात्मक पहलुओं पर विचार करने और उचित कानून लागू करने के बाद फैसला लिखना चाहिए।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में न्यायिक अधिकारी द्वारा पारित विवादित फैसलों की एक प्रति राजस्थान ज्यूडिशियल अकादमी के प्रभारी जज को भेजने का निर्देश दिया ताकि न्यायाधीश को जजमेंट राइटिंग का प्रशिक्षण दिया जा सके। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि न्यायिक अधिकारी के वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) के लिए इस आदेश की एक प्रति शामिल की जाए।
न्यायिक अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा की गई कठोर और प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने और उससे उत्पन्न होने वाली किसी भी आगे की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक (Stay) लगा दी है।
SONIKA PUROHIT v. STATE OF RAJASTHAN | डायरी नंबर- 44069-2025
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