PM Modi के एक कार्यक्रम में सिर्फ Vande Bharat trains को झंडा दिखाने और भाषण देने पर 1 करोड़ 61 लाख रुपये से ज्यादा की रकम पानी की तरह बहा दी गई। जिस देश में लाखों लोग रोजाना दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, जहां बेरोजगारी और गरीबी एक बड़ा सवाल है, वहां ऐसी फ़िजूल खर्ची क्या वाजिब है? लाखों के इस खर्चे का यह खुलासा हुआ है दक्षिण पश्चिम रेलवे (साउथ वेस्टर्न रेलवे) के बेंगलुरु डिवीजन द्वारा एक आरटीआई के जवाब में।
आरटीआई कार्यकर्ता अजय बसुदेव बोस द्वारा दायर एक सूचना के जवाब में रेलवे ने बताया कि 10 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बेंगलुरु से बेलगावी के बीच चलने वाली वंदे भारत ट्रेन का शुभारंभ करने के कार्यक्रम पर कुल 1,61,65,003 (एक करोड़, इकसठ लाख, पैंसठ हज़ार और तीन रुपये) की बेतहाशा रकम खर्च की गई।
इस भारी-भरकम रकम का इस्तेमाल किस तरह किया गया, रेलवे ने कोई विस्तृत ब्यौरा नहीं दिया है। सवाल यह उठता है कि आखिर एक ट्रेन का इंजन शुरू करने और कुछ मिनट के भाषण के लिए इतना पैसा किस मद में खर्च किया गया? क्या इस रकम से देश के गरीबों के कई परिवारों का पेट भर सकता था? क्या इससे कई युवाओं को रोजगार मिल सकता था?

यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी द्वारा वंदे भारत ट्रेनों के शुभारंभ पर करोड़ों रुपये की बर्बादी का खुलासा हुआ है। आरटीआई कार्यकर्ता अजय बोस का कहना है कि उन्होंने पहले भी कई बार इस तरह के खर्चों को रेखांकित किया है, लेकिन सरकारी तंत्र पर इसका कोई असर नहीं दिखता। ऐसा लगता है कि ‘अच्छे दिन’ केवल विशाल और खर्चीले शोशेबाजी वाले कार्यक्रमों के लिए हैं, आम जनता के लिए नहीं।
जब देश की अर्थव्यवस्था मंदी की मार झेल रही है, जब महंगाई आसमान पर है और आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है, तब सरकारी खजाने से इस तरह का फिजूलखर्ची जनता के गुस्से को और भड़काता है। आखिर कब तक आम जनता के टैक्स की कमाई को महज ‘तमाशा’ बनाने में खर्च किया जाता रहेगा? सरकार को जनता के पैसे की कीमत समझनी होगी और जवाबदेही तय करनी होगी। वरना, इसे जनता के प्रति एक और ढोंग और पैसे की बर्बादी के अलावा और क्या कहा जाएगा?
भारत में गरीबी पर क्या कहती है लेटेस्ट रिपोर्ट?
भारत में गरीबी के आंकड़ों को मापने के लिए मुख्य रूप से दो तरीके इस्तेमाल होते हैं: एक है मौद्रिक गरीबी (monetary poverty), जो विश्व बैंक जैसी संस्थाओं द्वारा दैनिक आय/खर्च के आधार पर मापी जाती है, और दूसरा है बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index – MPI), जो नीति आयोग द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर आदि 12 संकेतकों पर आधारित है। नवीनतम उपलब्ध आंकड़े 2022-23 के हैं, जो 2025 में जारी रिपोर्टों पर आधारित हैं। नीचे विस्तृत जानकारी दी गई है, केवल आधिकारिक स्रोतों से ली गई।
1. मौद्रिक गरीबी (Monetary Poverty) – विश्व बैंक के आंकड़े
विश्व बैंक ने जून 2025 में अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा को अपडेट किया है, जो अब $3.00 प्रति व्यक्ति प्रति दिन (2021 PPP) है (पहले $2.15, 2017 PPP थी)। भारत के लिए मुख्य आंकड़े:
2022-23 में गरीबी दर:
- नई गरीबी रेखा ($3.00/दिन) पर 5.25%।
- पुरानी रेखा ($2.15/दिन) पर 2.35%।
- BPL (नीचे गरीबी रेखा) लोगों की संख्या:
- नई रेखा पर लगभग 7.52 करोड़ (75.2 मिलियन) लोग।
- पुरानी रेखा पर लगभग 3.36 करोड़ (33.6 मिलियन) लोग।
- तुलना (2011-12 से 2022-23):
- नई रेखा पर गरीबी दर 27.12% से घटकर 5.25% हुई, जिससे लगभग 26.9 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले।
- ग्रामीण क्षेत्र: 2.8%, शहरी क्षेत्र: 1.1% (पुरानी रेखा पर)।
- नोट: ये आंकड़े घरेलू उपभोग व्यय सर्वे (HCES) 2022-23 पर आधारित हैं। विश्व बैंक के अनुसार, मध्यम-आय गरीबी रेखा ($3.65/दिन) पर 28.1% (लगभग 40 करोड़ लोग) हैं।
2. बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) – नीति आयोग के आंकड़े
नीति आयोग ने 2025 में वॉलंटरी नेशनल रिव्यू (VNR) रिपोर्ट में MPI पर अपडेट दिया है, जो NFHS-5 (2019-21) और प्रोजेक्शन पर आधारित है।
- 2022-23 में MPI दर: 11.28%।
- BPL लोगों की संख्या: लगभग 16.1 करोड़ (भारत की आबादी ~1.43 करोड़ मानकर)।
- तुलना:
- 2013-14: 29.17%, 2022-23: 11.28% – 24.82 करोड़ लोग बाहर निकले।
- 2015-16: 24.85%, 2019-21: 14.96% – 13.5 करोड़ लोग बाहर निकले।
- ग्रामीण: 19.28%, शहरी: 5.27% (2019-21)।
- नोट: MPI में स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास आदि शामिल हैं। नीति आयोग के सीईओ ने 2024 में अनुमान लगाया था कि गरीबी 5% से नीचे है, लेकिन 2025 की आधिकारिक रिपोर्ट MPI पर फोकस करती है।

भारत में गरीबी में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?
- बढ़ती असमानता: संसाधनों का असमान वितरण सापेक्ष गरीबी को जन्म देता है, जहाँ समग्र आर्थिक प्रगति के बावज़ूद कुछ व्यक्ति और समूह वंचित रह जाते हैं।
- विश्व असमानता रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, सबसे अमीर 1% लोगों के पास वैश्विक संपत्ति का 45% हिस्सा है, जबकि 3.6 बिलियन लोग अभी भी प्रतिदिन 6.85 अमेरिकी डॉलर (क्रय शक्ति समता (PPP)) से कम पर जीवन यापन कर रहे हैं, विश्व में 10 में से 1 महिला अत्यधिक गरीबी में रह रही है।
- सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार: कुछ वर्ग, जैसे महिलाएँ, वंचित समुदाय और विकलांग व्यक्ति, भेदभाव और संसाधनों तथा अवसरों तक पहुँच में बाधाओं का सामना करते हैं, जिससे गरीबी और गहराती है।
- लैंगिक असमानता: महिलाएँ और लड़कियाँ अक्सर भेदभाव और सीमित अवसरों का सामना करती हैं, जिससे उनके लिये गरीबी से बाहर निकलना और कठिन हो जाता है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुमान के अनुसार, भारत में पुरुष कुल श्रम आय का 82% अर्जित करते हैं, जबकि महिलाएँ केवल 18%।
- युवा बेरोज़गारी: बेरोज़गार युवाओं की उच्च संख्या, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, गरीबी और सामाजिक अशांति का कारण बन सकती है।
- नवीनतम उपलब्ध वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023-24 में देश में 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं के लिये सामान्य स्थिति पर अनुमानित बेरोज़गारी दर (UR) 10.2% थी, जो वैश्विक स्तर से कम है।
- खराब बुनियादी ढाँचा: बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वच्छ जल, स्वच्छता और पर्याप्त परिवहन प्रणाली जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच का अभाव व्यक्तियों को गरीबी के चक्र में फँसा सकता है, जिससे उनके आर्थिक अवसर और जीवन की समग्र गुणवत्ता सीमित हो सकती है।
मुख्य कारण और प्रगति
- गरीबी में कमी का श्रेय सरकारी योजनाओं जैसे PMJDY, PM Awas Yojana, Ujjwala आदि को दिया जाता है।
- 2025 तक भारत SDG 1.2 (बहुआयामी गरीबी आधी करने) को समय से पहले हासिल कर सकता है।
ये आंकड़े आधिकारिक हैं, लेकिन सर्वे में बदलाव के कारण तुलना में चुनौतियां हैं।
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