Muslim marriage | गुजरात हाईकोर्ट ने मुबारत से तलाक को दी मंजूरी, जानिए क्या है यह प्रक्रिया?

Published on: 12-08-2025
मुस्लिम पर्सनल लॉ

Muslim marriage से जुड़े एक मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुबारत (पारस्परिक सहमति से तलाक) के लिए किसी लिखित समझौते की जरूरत नहीं होती। जस्टिस ए.वाई. कोगजे और जस्टिस एन.एस. संजय गौड़ा की पीठ ने राजकोट फैमिली कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें एक मुस्लिम दंपति के तलाक के आवेदन को “अस्वीकार्य” बताया गया था।

दंपति ने मार्च 2021 में बिहार के मधुबनी जिले में इस्लामिक रीति-रिवाज से शादी की थी। उनके तीन बच्चे हैं, लेकिन पारिवारिक कलह के चलते वे एक साल से अलग रह रहे थे। कई बार सुलह की कोशिशें नाकाम होने के बाद दोनों ने मुबारत के जरिए तलाक लेने का फैसला किया।

हालांकि, फैमिली कोर्ट ने उनके आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि मुबारत के लिए लिखित समझौता अनिवार्य है। इसके बाद दंपति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट ने कुरान, हदीस और मुस्लिम कानून विशेषज्ञों के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि मुबारत तलाक का एक वैध तरीका है और इसमें लिखित दस्तावेज की जरूरत नहीं होती।

“मुबारत का मतलब है एक-दूसरे से मुक्ति पाना। यह तलाक का वह रूप है जहां पति-पत्नी दोनों की सहमति से शादी खत्म की जाती है।” हाई कोर्फैट ने माना कि फेमिली कोर्ट ने गलत समझा कि मुबारत के लिए लिखित समझौता जरूरी है। शरीयत में ऐसी कोई शर्त नहीं है। जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से निकाह तोड़ना चाहते हैं, तो मुबारत के तहत तलाक हो सकता है।”

मुबारत क्या है?

मुस्लिम कानून में तलाक दो तरह से हो सकता है:

  1. पति की तरफ से (तलाक) – पति बिना किसी कारण के तलाक दे सकता है।
  2. पत्नी की तरफ से (खुला या मुबारत) – अगर पति ने पत्नी को यह अधिकार दिया हो या दोनों सहमत हों।

इसमें ख़ास बात यह है कि:

  • इसमें दोनों पक्ष तलाक चाहते हैं।
  • तलाक का प्रस्ताव पति या पत्नी किसी की तरफ से भी आ सकता है।
  • एक बार सहमति होने के बाद यह तलाक वापस नहीं लिया जा सकता।
  • तलाक से पहले इद्दत (तीन माहवारी चक्र) का पालन करना जरूरी है।
  • तलाक में पति तलाक देता है और इसे वापस ले सकता है।
  • मुबारत में दोनों की सहमति से तलाक होता है और यह अटूट (इररेवोकेबल) होता है।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह 3 महीने के भीतर इस मामले का निपटारा करे। यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक की प्रक्रिया को सरल बनाता है और दिखाता है कि अदालतें धार्मिक अधिकारों का सम्मान करती हैं।
यह फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए एक सकारात्मक कदम है, जो दर्शाता है कि पारस्परिक सहमति से तलाक लेने के लिए अनावश्यक कानूनी औपचारिकताओं की जरूरत नहीं। अब मुबारत के जरिए तलाक लेने वाले जोड़ों को अधिक सुविधा मिलेगी।

Aawaaz Uthao: We are committed to exposing grievances against state and central governments, autonomous bodies, and private entities alike. We share stories of injustice, highlight whistleblower accounts, and provide vital insights through Right to Information (RTI) discoveries. We also strive to connect citizens with legal resources and support, making sure no voice goes unheard.

Follow Us On Social Media

Get Latest Update On Social Media