एक तरफ राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर स्वदेशी सामानों का झंडा बुलंद करते हुए विदेशी वस्तुओं पर सख्त प्रतिबंध का ऐलान कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ दिल्ली में बीजेपी सरकार अपने विधायकों को अमेरिकी कंपनी ऐपल के iPhone 16 प्रो और iPad बांटकर ‘स्वदेशी’ के नारे को ठेंगा दिखा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा देशभर में गूंज रहा है, लेकिन उनकी ही पार्टी की सरकारें इस नारे को कितना गंभीरता से ले रही हैं, यह दिल्ली और राजस्थान में बीजेपी सरकारों के ताजा कारनामों से साफ हो जाता है। एक तरफ राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर स्वदेशी सामानों का झंडा बुलंद करते हुए विदेशी वस्तुओं पर सख्त प्रतिबंध का ऐलान कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ दिल्ली में बीजेपी सरकार अपने विधायकों को अमेरिकी कंपनी ऐपल के iPhone 16 प्रो और iPad बांटकर ‘स्वदेशी’ के नारे को ठेंगा दिखा रही है। यह दोहरा चरित्र न केवल बीजेपी की नीतिगत अस्थिरता को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना सिर्फ भाषणों तक सीमित है?
राजस्थान में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने बुधवार को जोर-शोर से ऐलान किया कि शिक्षा, पंचायती राज और संस्कृत शिक्षा विभागों में अब केवल भारत में बनी वस्तुओं का ही उपयोग होगा। विदेशी सामानों की खरीद पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है, और अगर कोई अधिकारी या कर्मचारी नियम तोड़ेगा, तो उससे भुगतान वसूलने के साथ-साथ विभागीय कार्रवाई भी होगी। दिलावर ने रक्षाबंधन के मौके पर देशवासियों से चीनी राखियों का बहिष्कार करने और स्वदेशी राखियों को अपनाने की अपील की, यह कहते हुए कि विदेशी सामान खरीदना उन देशों को मजबूत करता है जो भारत के खिलाफ साजिश रचते हैं। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का हवाला देते हुए दावा किया कि चीन अपने मुनाफे का हिस्सा पाकिस्तान को देता है, इसलिए स्वदेशी अपनाना ‘राष्ट्रधर्म’ है। लेकिन इस जोशीले स्वदेशी अभियान की हवा तब निकल जाती है, जब हम दिल्ली की ओर देखते हैं।

दिल्ली में बीजेपी सरकार ने अपने सभी 70 विधायकों को, जिसमें विपक्ष के विधायक भी शामिल हैं, iPhone 16 प्रो और iPad जैसे महंगे गैजेट्स बांट दिए। यह कदम नेशनल ई-विधान एप्लिकेशन (NeVA) के तहत विधानसभा को पेपरलेस बनाने के लिए उठाया गया है। सोमवार को शुरू हुए विधानसभा सत्र में सभी विधायक इन नए स्मार्टफोन्स और टैबलेट्स के साथ नजर आए। एक iPhone 16 प्रो की कीमत लगभग 1.20 लाख रुपये है, यानी दिल्ली सरकार ने करदाताओं के पैसे से करीब 84 लाख रुपये सिर्फ फोन्स पर खर्च किए। यह वही बीजेपी है, जो राजस्थान में विदेशी सामानों का बहिष्कार करने का ढोल पीट रही है। जब पीएम मोदी खुद ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा दे रहे हैं और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच स्वदेशी को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं, तो दिल्ली में उनकी पार्टी का यह कदम क्या संदेश देता है? क्या स्वदेशी माइक्रोमैक्स या लावा जैसे भारतीय ब्रांड्स के फोन इस काम के लिए नाकाफी थे?

यह दोहरा रवैया नया नहीं है। बीजेपी की नीतियों में पहले भी स्वदेशी और वैश्वीकरण के बीच का यह टकराव देखा गया है। 1998-2004 के एनडीए शासन में बीजेपी ने उदारीकरण और निजीकरण को बढ़ावा दिया, जिसकी आलोचना उनके अपने सहयोगी संगठन आरएसएस और स्वदेशी जागरण मंच ने की थी। आज जब पीएम मोदी वैश्विक मंच पर भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का दावा कर रहे हैं, तब उनकी पार्टी का यह कदम उनके ही नारे को कमजोर करता है। दिल्ली में विधायकों को iPhone बांटना न केवल करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग है, बल्कि यह स्वदेशी के प्रति बीजेपी की प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाता है। क्या राजस्थान में स्वदेशी का ढोल पीटना और दिल्ली में विदेशी गैजेट्स बांटना बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है, या यह सिर्फ नीतिगत भटकाव का नमूना है?
सोशल मीडिया पर भी इस दोहरेपन की खूब चर्चा है। कुछ यूजर्स ने लिखा, “मोदी जी स्वदेशी की बात करते हैं, लेकिन दिल्ली में बीजेपी सरकार टैक्सपेयर्स के पैसे से iPhone 16 प्रो बांट रही है। माइक्रोमैक्स के फोन में क्या खराबी थी?” एक अन्य यूजर ने तंज कसते हुए कहा, “हाइपोक्रेसी की भी हद होती है। स्वदेशी का नारा और iPhone का तोहफा-बीजेपी का असली चेहरा सामने है।” यह सवाल जायज है कि जब राजस्थान में विदेशी सामानों पर सख्ती की जा रही है, तो दिल्ली में बीजेपी सरकार को अमेरिकी ब्रांड के प्रति इतना प्रेम क्यों? क्या यह सिर्फ तकनीकी जरूरतों का मामला है, या फिर स्वदेशी के नारे को केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है?
आखिर में, बीजेपी को यह तय करना होगा कि वह ‘मेक इन इंडिया’ को सिर्फ एक नारा बनाए रखना चाहती है या उसे जमीनी हकीकत में उतारना चाहती है। राजस्थान में स्वदेशी की कड़क नीति और दिल्ली में iPhone की चमक के बीच का यह फासला न केवल पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना अभी कितना अधूरा है। जब तक नीतियों में यह दोहरापन रहेगा, तब तक ‘स्वदेशी’ का नारा सिर्फ भाषणों और प्रेस कॉन्फ्रेंस तक ही सीमित रहेगा।
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