केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पुलिस द्वारा शराब टेस्ट करने की प्रक्रिया में गंभीर खामियों को उजागर करते हुए कहा कि “बिना प्रॉपर कैलिब्रेशन वाले ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के नतीजे विश्वसनीय नहीं हो सकते।” जस्टिस वी.जी. अरुण की पीठ ने यह टिप्पणी एक याचिकाकर्ता के मामले में की, जिस पर मेडिकल कॉलेज पुलिस स्टेशन, तिरुवनंतपुरम में मद्यपान के बाद वाहन चलाने और रैश ड्राइविंग का आरोप लगाया गया था।
मामला 30 दिसंबर 2024 का है, जब याचिकाकर्ता सारन कुमार को मेडिकल कॉलेज-कुमारपुरम सड़क पर रात 8:30 बजे स्कूटर चलाते हुए पुलिस ने रोका। पुलिस को शक हुआ कि वह नशे में वाहन चला रहा है, जिसके बाद उसे गिरफ्तार कर ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के लिए ले जाया गया। टेस्ट में उसके खून में अल्कोहल की मात्रा 41 mg/100ml पाई गई, जो कानूनी सीमा (30 mg/100ml) से अधिक थी। इसके आधार पर उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 281 और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185, 3(1) व 181 के तहत केस दर्ज किया गया।
याचिकाकर्ता के वकील फहीम अहसन ने हाईकोर्ट में दलील दी कि पुलिस ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 203 का उल्लंघन करते हुए टेस्ट तुरंत नहीं करवाया, बल्कि काफी देर बाद किया। इसके अलावा, धारा 204 के मुताबिक, गिरफ्तारी के दो घंटे के भीतर मेडिकल टेस्ट करवाना जरूरी था, जो नहीं हुआ। सबसे बड़ी खामी यह थी कि ब्रेथ एनालाइजर डिवाइस का कैलिब्रेशन ‘जीरो’ नहीं था। टेस्ट रिपोर्ट में ‘एयर ब्लैंक टेस्ट’ (डिवाइस की शुद्धता जांचने वाला टेस्ट) का रीडिंग 412 mg/100ml दिखाया गया, जो कि असंभव है। उन्होंने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा कि हर टेस्ट से पहले डिवाइस का कैलिब्रेशन ‘0.000’ होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि “एयर ब्लैंक टेस्ट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ब्रेथ एनालाइजर डिवाइस पिछले टेस्ट के अवशेषों से प्रभावित नहीं है। यदि ब्लैंक टेस्ट का रीडिंग ‘0.000’ नहीं है, तो टेस्ट के नतीजे विश्वसनीय नहीं माने जा सकते।” कोर्ट ने पाया कि पुलिस अधिकारियों को इस प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी, जिसके चलते उन्होंने डीजीपी को निर्देश दिया कि वह सभी पुलिसकर्मियों को ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट की सही प्रक्रिया के बारे में दिशा-निर्देश जारी करें।
किन आरोपों को मिली मंजूरी, किन्हें खारिज किया?
हाईकोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 (नशे में वाहन चलाना), 3(1) (बिना लाइसेंस वाहन चलाना) और 181 (लाइसेंस न होने पर दंड) के तहत चल रहे मामले को खारिज कर दिया, क्योंकि टेस्ट रिपोर्ट अविश्वसनीय थी और याचिकाकर्ता के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस (Annexure A2) था। हालांकि, BNS की धारा 281 (मानव जीवन को खतरे में डालकर वाहन चलाना) के तहत मामला जारी रखने की इजाजत दी, क्योंकि यह सवाल सबूतों के आधार पर तय होगा कि क्या याचिकाकर्ता ने वाकई खतरनाक तरीके से वाहन चलाया था।
यह फैसला केरल पुलिस के लिए एक बड़ा सबक है, क्योंकि अब उन्हें हर ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट से पहले डिवाइस का कैलिब्रेशन चेक करना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “यदि टेस्ट प्रक्रिया में खामी है, तो उसके आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।” इससे भविष्य में नशे में ड्राइविंग के मामलों में पुलिस को और सावधानी बरतनी होगी।
केरल हाईकोर्ट के इस फैसले ने न केवल एक व्यक्ति को न्याय दिलाया, बल्कि पुलिस प्रक्रियाओं में सुधार की भी नींव रखी। अब डीजीपी को सभी पुलिस स्टेशनों को नए दिशा-निर्देश जारी करने होंगे, ताकि भविष्य में ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट विवादों से मुक्त हों। यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि कानूनी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करना कितना जरूरी है।
ब्रेथ एनालाइजर (Breathalyzer) टेस्ट क्या होता है और यह कैसे काम करता है?
ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट (श्वास परीक्षण) एक ऐसी जांच है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के सांस में मौजूद अल्कोहल (एथेनॉल) की मात्रा मापी जाती है। यह टेस्ट आमतौर पर पुलिस द्वारा नशे में वाहन चलाने के संदेह में ड्राइवरों पर किया जाता है। इसके अलावा, एविएशन, रेलवे और कुछ संवेदनशील नौकरियों में भी इसका उपयोग होता है।
- अधिकांश ब्रेथ एनालाइजर डिवाइस में फ्यूल सेल सेंसर या अवरक्त (IR) स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का उपयोग होता है।
- जब कोई व्यक्ति डिवाइस में फूंक मारता है, तो सांस में मौजूद अल्कोहल रासायनिक प्रतिक्रिया करता है और विद्युत संकेत उत्पन्न करता है।
- यह संकेत डिवाइस द्वारा मापा जाता है और मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर (mg/100ml) में रीडिंग दिखाता है।
एयर ब्लैंक टेस्ट (Air Blank Test) क्यों जरूरी है?
- हर टेस्ट से पहले डिवाइस को शुद्ध हवा (एयर ब्लैंक टेस्ट) से चेक किया जाता है ताकि पिछले टेस्ट का कोई अवशेष न रह जाए।
- यदि ब्लैंक टेस्ट का रीडिंग 0.000 mg/100ml नहीं है, तो डिवाइस को दोषपूर्ण माना जाता है।
- केरल हाईकोर्ट ने इसी गलती को चिन्हित करते हुए पुलिस प्रक्रिया को खारिज किया।
कानूनी सीमा क्या है?
- भारत में मोटर वाहन अधिनियम के तहत 30 mg/100ml से अधिक अल्कोहल होने पर ड्राइवर को दोषी माना जाता है।
- 30-60 mg/100ml के बीच रीडिंग होने पर जुर्माना और लाइसेंस निलंबन हो सकता है।
- 60 mg/100ml से अधिक होने पर जुर्माना, जेल और लाइसेंस रद्द हो सकता है।
क्या ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट 100% सही होता है?
नहीं, कुछ स्थितियों में यह गलत रीडिंग दे सकता है, जैसे:
- माउथवॉश या कुछ दवाओं के इस्तेमाल के बाद
- डिवाइस का कैलिब्रेशन ठीक न होना (जैसा इस केस में हुआ)
- टेस्ट में देरी होने पर अल्कोहल का स्तर कम हो सकता है।
इसीलिए, ब्लड टेस्ट को अधिक विश्वसनीय माना जाता है।
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