India-Russia Oil Trade – भारत और अमेरिका के बीच संबंध हाल के महीनों में तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस से सस्ते तेल की खरीद पर अमेरिका पहले ही नाराज़गी जता चुका है। अब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वरिष्ठ सलाहकार और व्हाइट हाउस के ट्रेड एडवाइज़र पीटर नवारो ने भारत पर एक नया हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भारत रूस से सस्ता तेल लेकर उसे भारी मुनाफ़े में बेच रहा है और इस मुनाफ़े का लाभ “ब्राह्मण वर्ग” को मिल रहा है। इस विवादित टिप्पणी ने न केवल कूटनीतिक हलचल मचाई है बल्कि भारत के भीतर जातीय विमर्श को भी हवा दे दी है।
नवारो का विवादित बयान
अमेरिकी चैनलों पर दिए इंटरव्यू में पीटर नवारो ने कहा:
“भारत एक तरह से क्रेमलिन का ऑयल लॉन्ड्रॉमेट बन गया है। रूसी कच्चा तेल छूट पर खरीदकर भारत उसे रिफाइन कर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ऊँचे दाम पर बेच रहा है। इससे रूस को युद्ध जारी रखने की आर्थिक मदद मिलती है और भारत के भीतर ब्राह्मण अमीर बनते जा रहे हैं।”
नवारो ने भारत की नीति को “अनैतिक” बताते हुए कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
अमेरिका की टैरिफ नीति

ट्रंप प्रशासन ने पहले ही भारत पर अब तक का सबसे बड़ा टैरिफ लगा दिया है। अगस्त 2025 में अमेरिका ने भारत से आयातित कई उत्पादों पर 25% शुल्क लगाया था जिसे हाल ही में बढ़ाकर 50% कर दिया गया। नवारो जैसे सलाहकारों का कहना है कि जब तक भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करता, यह दबाव जारी रहेगा।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने नवारो के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा,
“भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और नागरिकों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तेल खरीद रहा है। विकसित देश पहले खुद रूस से तेल और गैस खरीदते रहे हैं। अब भारत पर सवाल उठाना केवल दोहरा मापदंड है।”
भारत का यह भी कहना है कि तेल आयात केवल राष्ट्रीय हित का मामला है और इस पर बाहरी दबाव स्वीकार्य नहीं।
जातिगत संदर्भ पर विवाद

नवारो का “ब्राह्मण” शब्द इस्तेमाल करना भारत में सबसे बड़ी बहस का कारण बना। जातिगत पहचान को जोड़कर दिए गए इस बयान की कई नेताओं और विशेषज्ञों ने आलोचना की। कांग्रेस सांसद ने कहा, “यह बयान न सिर्फ़ गलत है बल्कि जातीय रूप से अपमानजनक भी है। अमेरिका को ऐसे सलाहकारों की भाषा पर ध्यान देना चाहिए।”
भारतीय सोशल मीडिया पर भी #StopCastePolitics ट्रेंड करने लगा। कई लोगों का कहना है कि अमेरिका के वरिष्ठ सलाहकार को इस तरह का शब्द इस्तेमाल करने से बचना चाहिए था।
विशेषज्ञों की राय
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जेफ़्री सैक्स ने अमेरिका की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि भारत जैसे रणनीतिक साझेदार को दबाव में डालना “एक मूर्खतापूर्ण नीति” है। उनका मानना है कि इससे अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने में कमजोर पड़ सकता है।
भारतीय कूटनीतिक हलकों का भी कहना है कि नवारो का बयान केवल अमेरिका-भारत रिश्तों को और कठिन बना देगा।
भारत ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा। वहीं अमेरिका यह दिखाने पर अड़ा है कि वह इस मसले पर नरमी नहीं बरतेगा। अब यह देखना अहम होगा कि आने वाले महीनों में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत होती है या यह तनाव और गहराता है।
नवारो का बयान भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया मोड़ लेकर आया है। “ब्राह्मण मुनाफ़ा” जैसी टिप्पणी ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर विवाद पैदा कर दिया है। अमेरिका की टैरिफ नीति और भारत का ऊर्जा सुरक्षा पर अडिग रहना, दोनों ही देशों के रिश्तों की दिशा तय करेंगे।
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