20 साल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को मिली 40 दिन की पैरोल
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की 14वीं बार पैरोल ने एक बार फिर विवादों को जन्म दे दिया है। बलात्कार और हत्या जैसे संगीन अपराधों में 20 साल की सजा काट रहे गुरमीत को हरियाणा सरकार ने 40 दिन की पैरोल दी है, जिसके बाद वे 5 अगस्त 2025 को रोहतक की सुनारिया जेल से सिरसा डेरे के लिए रवाना हुए। इस बार पैरोल रक्षाबंधन और उनके जन्मदिन के मौके पर दी गई है। लेकिन बार-बार मिलने वाली इस रिहाई ने जनता में आक्रोश पैदा कर दिया है, और कानूनी व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
आध्यात्मिकता से अपराध तक की कहानी
15 अगस्त 1967 को हरियाणा के श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोदिया गांव में जन्मे गुरमीत राम रहीम ने 1990 में 23 साल की उम्र में डेरा सच्चा सौदा की कमान संभाली। उनके नेतृत्व में डेरा एक विशाल संगठन बना, जिसके लाखों अनुयायी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैले। नशामुक्ति, रक्तदान और वृक्षारोपण जैसे सामाजिक कार्यों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। उनकी फिल्में जैसे MSG: द मैसेंजर और म्यूजिक एल्बम हाइवे लव चार्जर ने उन्हें “रॉकस्टार बाबा” की पहचान दी। लेकिन 2002 में एक अनाम पत्र ने उनके खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाए, जिसने उनकी छवि को धूमिल कर दिया।
2002 में एक अनाम पत्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को भेजकर डेरे की काली सच्चाई को उजागर किया। दो साध्वियों ने गुरमीत पर यौन शोषण का आरोप लगाया, जिसके बाद सीबीआई ने जांच शुरू की। यह जांच सालों तक चली, और इस दौरान गुरमीत का प्रभाव कम नहीं हुआ। उनके अनुयायियों का विश्वास अटल रहा, और डेरे का राजनीतिक रसूख बढ़ता गया। 25 अगस्त 2017 को पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने उन्हें दो साध्वियों के बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया। 28 अगस्त को उन्हें 20 साल की सजा सुनाई गई—प्रत्येक मामले में 10 साल और 30 लाख रुपये का जुर्माना। फैसले के बाद हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान में उनके समर्थकों ने हिंसक प्रदर्शन किए, जिसमें 38 लोग मारे गए, सैकड़ों घायल हुए, और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई। गुरमीत को रोहतक की सुनारिया जेल भेजा गया।
2019 में, उनके खिलाफ दो और संगीन मामले सामने आए। पत्रकार रामचंद्र छत्रपति, जिन्होंने 2002 में अपने अखबार पूरा सच में डेरे की सच्चाई उजागर की थी, और डेरे के पूर्व प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या के लिए गुरमीत को दोषी ठहराया गया। दोनों मामलों में उन्हें उम्रकैद की सजा मिली। इन सजाओं ने उनकी छवि को और धूमिल किया, लेकिन उनके अनुयायियों का एक बड़ा वर्ग उनके प्रति निष्ठावान रहा।

बार-बार पैरोल: सजा या मजा?
2020 से 2025 तक, गुरमीत को कम से कम 14 बार पैरोल या फरलो मिली, जो कुल मिलाकर 300 दिनों से अधिक की अस्थायी रिहाई है। इनमें शामिल हैं:
- 24 अक्टूबर 2020: 1 दिन की पैरोल (मां से मिलने)
- 21 मई 2021: 12 घंटे की पैरोल
- 7 फरवरी 2022: 21 दिन की फरलो
- 17 जून 2022: 30 दिन की पैरोल
- 14 अक्टूबर 2022: 40 दिन की पैरोल
- 21 जनवरी 2023: 40 दिन की पैरोल
- 20 जुलाई 2023: 30 दिन की पैरोल
- 20 नवंबर 2023: 21 दिन की फरलो
- 19 जनवरी 2024: 50 दिन की पैरोल
- 13 अगस्त 2024: 21 दिन की फरलो
- 2 अक्टूबर 2024: 20 दिन की पैरोल
- 28 जनवरी 2025: 30 दिन की पैरोल
- 9 अप्रैल 2025: 21 दिन की फरलो
- 5 अगस्त 2025: 40 दिन की पैरोल
इन रिहाइयों का समय अक्सर हरियाणा, पंजाब, या दिल्ली के चुनावों के साथ मेल खाता रहा। विपक्षी दलों-कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इसे राजनीतिक सौदेबाजी का हिस्सा बताया। हरियाणा जेल मैनुअल के अनुसार, एक कैदी को अच्छे आचरण के आधार पर साल में 70 दिन की पैरोल मिल सकती है। 2022 में नियमों को और लचीला किया गया, जिसके बाद 10 साल से अधिक सजा वाले कैदियों को भी पैरोल मिलने का रास्ता खुला। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 2024 में सरकार को बार-बार पैरोल देने पर फटकार लगाई, लेकिन रिहाइयां जारी रहीं।
पैरोल के दौरान गुरमीत पर कई शर्तें लगाई गईं-हरियाणा में न रहना, राजनीति से दूर रहना, और सोशल मीडिया पर प्रचार न करना। लेकिन 2022 में बरनावा आश्रम से उनके वीडियो संदेश सामने आए, जिसमें वे अनुयायियों को सुमिरन और सामाजिक कार्यों के लिए प्रेरित कर रहे थे। विपक्ष ने इसे शर्तों का उल्लंघन बताया। उनकी बेटी हनीप्रीत और सहयोगियों ने डेरे की गतिविधियों को संभाला, और 2017 की हिंसा में हनीप्रीत पर शामिल होने का आरोप भी लगा।
गुरमीत की बार-बार रिहाई ने सामाजिक और कानूनी हलकों में तीखी बहस छेड़ दी है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने इसे अन्यायपूर्ण बताया, जबकि सामाजिक कार्यकर्ता इसे प्रभावशाली लोगों को मिलने वाले विशेषाधिकारों का उदाहरण मानते हैं। सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा साफ दिखता है। एक यूजर ने लिखा, “रेप और हत्या जैसे अपराधों के दोषी को बार-बार छूट कैसे मिल रही है? क्या कानून सिर्फ आम लोगों के लिए है?” एक अन्य यूजर ने सवाल उठाया, “सामान्य कैदी पैरोल के लिए सालों इंतजार करते हैं, लेकिन गुरमीत को हर साल रिहाई क्यों?”

डेरे का रसूख
डेरा सच्चा सौदा का सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, कुरुक्षेत्र और पंजाब की 50-60 विधानसभा सीटों पर प्रभाव माना जाता है। माना जाता है कि डेरे के लाखों अनुयायी वोटरों को प्रभावित करते हैं, जिसे गुरमीत की बार-बार रिहाई का कारण माना जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनावों में डेरे ने बीजेपी का समर्थन किया था, जिसने इस विवाद को और हवा दी। डेरे के वकील जितेंद्र खुराना का कहना है कि गुरमीत को कानूनी दायरे में पैरोल मिली है, और यह उनका अधिकार है। लेकिन आलोचकों का तर्क है कि यह प्रभाव और सत्ता का दुरुपयोग है।
गुरमीत की बार-बार रिहाई ने भारतीय कानूनी व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है। सामान्य कैदियों को पैरोल के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, लेकिन गुरमीत की रिहाइयां असामान्य रूप से तेज और बार-बार रही हैं। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सरकार से इस पर जवाब मांगा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील प्रदीप रापरिया ने कहा, “यह न केवल कानून का मजाक है, बल्कि पीड़ितों के साथ अन्याय भी है।”
डेरा समर्थक दावा करते हैं कि गुरमीत सामाजिक कार्यों-मुफ्त चिकित्सा शिविर, शिक्षा, और नशामुक्ति अभियानों में योगदान देते हैं। लेकिन आलोचक इसे उनके प्रभाव को बनाए रखने का जरिया मानते हैं।
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