बेंगलुरु: Google India को एक बड़ी राहत देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को नयना कृष्णा द्वारा दायर मानहानि के एक मुकदमे से हटा दिया है। यह मामला बेंगलुरु की निचली अदालत में चल रहे मुकदमे (O.S.No.6216/2017) से संबंधित है, जिसमें गूगल इंडिया को प्रतिवादी नंबर 6 के रूप में शामिल किया गया था। न्यायमूर्ति विजयकुमार ए. पाटिल ने 9 जुलाई को अपने आदेश में निचली अदालत के 11 फरवरी 2019 के आदेश को रद्द कर दिया और गूगल इंडिया को मुकदमे से हटाने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने माना कि Google इंडिया प्राइवेट लिमिटेड भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत एक अलग कानूनी इकाई है, जबकि Google LLC और YouTube अमेरिका में पंजीकृत हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट के गोल्डमाइन्स टेलीफिल्म्स बनाम साई एंटरटेनमेंट (2015) के फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया गया कि भारतीय सहायक कंपनियों को उनकी वैश्विक मूल कंपनियों की कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
नयना कृष्णा ने गूगल इंडिया सहित 21 प्रतिवादियों के खिलाफ बेंगलुरु की LXIV अतिरिक्त सिटी सिविल और सत्र न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। यह मुकदमा स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) की मांग को लेकर था जिससे कि प्रतिवादी वादी की प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाले फोटो, वीडियो और मानहानिकारक बयानों को अपनी वेबसाइटों, चैनलों और समाचार पत्रों में प्रकाशित करने से रोके जाएं। गूगल इंडिया ने इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं हैं और न ही कोई ऐसा सामग्री पेश की गई है, जो यह साबित करे कि उन्होंने वादी के खिलाफ मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित, वेब-होस्ट या प्रसारित की है।
गूगल इंडिया का पक्ष
गूगल इंडिया की ओर से अधिवक्ता मृणाल शंकर ने तर्क दिया कि गूगल इंडिया एक अलग कानूनी इकाई है, जो भारत में कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत है और यह गूगल LLC और यूट्यूब से पूरी तरह अलग है। उन्होंने कहा, “गूगल इंडिया को गलत तरीके से गूगल और यूट्यूब का मालिक बताया गया है, जबकि यह एक अलग कॉर्पोरेट इकाई है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि गूगल इंडिया केवल गूगल LLC के ‘AdWords’ प्रोग्राम के तहत भारत में ऑनलाइन विज्ञापन स्थान का गैर-अनन्य पुनर्विक्रेता है और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और तकनीकी सहायता सेवाएं प्रदान करता है, जो इस मुकदमे का विषय नहीं हैं।
अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले M.J. Zakharia Sait बनाम T.M. Mohammed and others (1990) 3 SCC 396 का हवाला देते हुए कहा कि मानहानि के मामले में वाद में स्पष्ट रूप से मानहानिकारक बयानों का उल्लेख होना चाहिए। उन्होंने कहा, “वाद में कोई भी विशिष्ट आरोप या सामग्री नहीं है जो यह साबित करे कि गूगल इंडिया ने मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित की।” इसके अलावा, उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले (Goldmines Telefilms Private Limited बनाम Sai Entertainment Private Limited and others, Suit No.502/2015) का भी जिक्र किया, जिसमें यूट्यूब LLC को एक अलग इकाई माना गया था और गूगल इंडिया को मुकदमे में शामिल करने की कोई आवश्यकता नहीं पाई गई थी।
हाईकोर्ट ने क्या कहा:
न्यायमूर्ति विजयकुमार ए. पाटिल ने अपने आदेश में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
- मानहानि के लिए विशिष्ट आरोपों की आवश्यकता: कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, “मानहानि के मुकदमे में, वाद में स्पष्ट रूप से मानहानिकारक बयानों का उल्लेख होना चाहिए। यह स्पष्ट करना होगा कि कौन से मानहानिकारक बयान कब, कहां और किसके द्वारा प्रकाशित किए गए। इस तरह के विशिष्ट आरोपों के अभाव में, याचिकाकर्ता के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा का मुकदमा आगे नहीं बढ़ सकता।”
- गूगल इंडिया की गैर-जरूरी उपस्थिति: कोर्ट ने माना कि, “वाद में कोई विशिष्ट आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता-प्रतिवादी नंबर 6 ने कोई मानहानिकारक सामग्री पोस्ट, प्रसारित या वेब-होस्ट की है। इस तरह के विशिष्ट आरोपों के अभाव में, मैं इस निष्कर्ष पर हूं कि याचिकाकर्ता इस मुकदमे में आवश्यक पक्षकार नहीं है।”
- गूगल इंडिया और गूगल LLC की अलग पहचान: कोर्ट ने कहा, “गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत एक अलग कानूनी इकाई है और यह गूगल LLC की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। यदि कोई पोस्टिंग, प्रसारण या वेब-होस्टिंग गूगल LLC या यूट्यूब द्वारा की गई है, तो याचिकाकर्ता पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।”
- निचली अदालत का त्रुटिपूर्ण आदेश: कोर्ट ने निचली अदालत के 11 फरवरी 2019 के आदेश को रद्द करते हुए कहा, “निचली अदालत ने याचिकाकर्ता की दलीलों पर विचार नहीं किया और बिना कोई कारण बताए आवेदन को खारिज कर दिया।”
अन्य मामलों में समान फैसले
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि निचली अदालत ने समान परिस्थितियों में कई अन्य मामलों में गूगल इंडिया को मुकदमों से हटाने के आदेश दिए हैं। इनमें शामिल हैं:
- Sanjana Archana Galrani बनाम Asianet Suvarna & Ors. (3 दिसंबर 2022)
- Divya Urduga M बनाम Publishers and Broadcasters Welfare Association of Karnataka & Ors. (28 अक्टूबर 2022)
- Rajashekara Hetnal बनाम Times of India & Ors. (28 फरवरी 2024)
- Sreeleela बनाम Times of India & Ors. (21 जून 2024)
- अन्य समान मामले
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा “वादी ने Google इंडिया के खिलाफ यह स्पष्ट करने में विफल रही है कि किस विशिष्ट सामग्री को उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था”. मात्र Google इंडिया को ‘Google और YouTube का मालिक’ बताना कॉर्पोरेट पृथक्करण की अनदेखी है और बिना ठोस सबूतों के Google इंडिया को केस में शामिल करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
यह फैसला गूगल इंडिया के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि केवल गूगल LLC या यूट्यूब से संबंधित गतिविधियों के आधार पर गूगल इंडिया को मुकदमे में शामिल नहीं किया जा सकता। यह मामला कॉर्पोरेट इकाइयों की अलग कानूनी पहचान और मानहानि के मामलों में विशिष्ट आरोपों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इस फैसले से भविष्य में समान मामलों में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
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