क्या आप अपनी EV (इलेक्ट्रिक गाड़ी) में लेह-लद्दाख घूमने जाने की सोच रहे हैं तो ये आर्टिकल आपके लिए बहुत काम आ सकता है।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, और पर्यावरण के प्रति जागरूकता के साथ-साथ सरकार की नीतियां इस क्षेत्र को बढ़ावा दे रही हैं। हालांकि, इलेक्ट्रिक गाड़ियों के साथ ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे लेह-लद्दाख, की यात्रा करना एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेह-लद्दाख जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग न केवल चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण कठिन है, बल्कि वहां की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियां भी कई तकनीकी और व्यावहारिक समस्याएं पैदा करती हैं।
चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन यह अभी भी मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों तक सीमित है। फरवरी 2024 तक, देश में केवल 12,146 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन सक्रिय थे। लेह-लद्दाख जैसे सुदूर और कम आबादी वाले क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशनों की उपलब्धता लगभग नगण्य है। नीति आयोग की हैंडबुक के अनुसार, लंबी दूरी की यात्रा के लिए हर 25 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन आवश्यक हैं, लेकिन मनाली-लेह राजमार्ग या अन्य उच्च ऊंचाई वाले मार्गों पर यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस कमी के कारण, यात्रियों को अपनी यात्रा की सावधानीपूर्वक योजना बनानी पड़ती है, जिसमें बैटरी रेंज और चार्जिंग बिंदुओं की उपलब्धता का विशेष ध्यान रखना होता है।
बैटरी प्रदर्शन पर ऊंचाई और ठंड का प्रभाव
लेह-लद्दाख जैसे क्षेत्रों में ठंडी जलवायु और उच्च ऊंचाई इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी के प्रदर्शन को प्रभावित करती है। कम तापमान में लिथियम-आयन बैटरी की दक्षता 20-30% तक कम हो सकती है, जिससे वाहन की रेंज में कमी आती है। लेह-लद्दाख में सर्दियों में तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है, जो बैटरी के चार्जिंग समय को बढ़ाता है और डिस्चार्ज दर को प्रभावित करता है। इसके अलावा, उच्च ऊंचाई पर हवा का घनत्व कम होने से बैटरी के थर्मल मैनेजमेंट सिस्टम पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे ओवरहीटिंग का खतरा बढ़ सकता है। ये तकनीकी चुनौतियां उन वाहनों के लिए विशेष रूप से गंभीर हैं जो ऑफ-रोड ड्राइविंग के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं।

भौगोलिक और सड़क की स्थिति
लेह-लद्दाख की सड़कें ऊबड़-खाबड़, पथरीली, और अक्सर कीचड़ या नदी-नालों से भरी होती हैं। ये परिस्थितियां इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए कई समस्याएं पैदा करती हैं। अधिकांश ईवी, जैसे टाटा नेक्सन ईवी या एमजी जेडएस ईवी, शहरी और राजमार्ग ड्राइविंग के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, न कि ऑफ-रोड यात्रा के लिए। इस कड़ी में उन्नत टेक्नोलॉजी और ऑफरोड क्षमता के साथ महिंद्रा और टाटा मोटर्स ने अपने कुछ नए इलेक्ट्रिक वाहन मार्केट में उतारे हैं मगर अभी तक उन गाड़ियों को पहाड़ी अथवा हाइ एल्टीट्यूड वाली जगह पर ले जाने को लेकर कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं आई है। कठिन रास्तों पर बैटरी और मोटर पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे ऊर्जा की खपत बढ़ती है और रेंज कम होती है। बारिश और बर्फबारी के कारण सड़कों की स्थिति और खराब हो सकती है, जिससे वाहन की ग्राउंड क्लीयरेंस और ट्रैक्शन कंट्रोल सिस्टम की कमी एक बड़ी समस्या बन जाती है।
बिजली आपूर्ति की अनिश्चितता
लेह-लद्दाख जैसे क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति अनियमित और अविश्वसनीय हो सकती है। कई गांवों और कस्बों में बिजली की उपलब्धता और थ्री फेस कनेक्शन की उपलब्धता सीमित ही नहीं बल्कि ना के बराबर होती है, और चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए आवश्यक हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनें उपलब्ध नहीं हैं। सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित चार्जिंग स्टेशन अभी तक इस क्षेत्र में व्यापक रूप से लागू नहीं हुए हैं। यह स्थिति यात्रियों के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि चार्जिंग स्टेशन की अनुपस्थिति में वाहन को चार्ज करने के लिए वैकल्पिक साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है, जो हमेशा संभव नहीं होता।
रखरखाव और सर्विसिंग की कमी
यात्रा के दौरान इन खतरनाक मार्गों पर यदि आपकी गाड़ी में कोई तकनीकी खराबी आ जाए तो मरम्मत और सर्विसिंग के लिए विशेषज्ञ तकनीशियनों और उपकरणों की उपलब्धता शून्य है। लेह-लद्दाख जैसे सुदूर क्षेत्रों में ईवी सर्विस सेंटर की कमी एक गंभीर समस्या है और उसे ठीक करने के लिए नजदीकी सर्विस सेंटर तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है। बैटरी रिप्लेसमेंट या कोई अन्य मरम्मत की लागत भी अधिक होती है, जो लंबी यात्राओं के दौरान आर्थिक बोझ बढ़ा सकती है।

इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ लेह-लद्दाख जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों की यात्रा वर्तमान में कई व्यावहारिक और तकनीकी चुनौतियों से घिरी हुई है। चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, ठंड और ऊंचाई के कारण बैटरी प्रदर्शन में कमी, कठिन सड़कें, अनियमित बिजली आपूर्ति, और सर्विसिंग की अनुपलब्धता इस यात्रा को जोखिम भरा बनाते हैं। हालांकि, सरकार की योजनाएं और निजी कंपनियों के प्रयास भविष्य में इन समस्याओं को कम कर सकते हैं। सौर और पवन ऊर्जा पर आधारित चार्जिंग स्टेशन, बैटरी स्वैपिंग तकनीक, और ऑफ-रोड क्षमता वाली बैटरी प्रणालियों का विकास इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। वर्तमान में, यात्रियों को ऐसी यात्रा के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनानी होगी, जिसमें बैटरी रेंज, चार्जिंग बिंदु, और मौसम की जानकारी शामिल हो। पारंपरिक ईंधन वाहन अभी भी इस तरह के साहसिक गंतव्यों के लिए अधिक व्यावहारिक हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में प्रगति के साथ, निकट भविष्य में लेह-लद्दाख जैसे क्षेत्रों में पर्यावरण-अनुकूल यात्रा संभव हो सकती है।
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