Elephant Mahadevi Vantara में क्यों? जानिए कोल्हापुर की जनभावनाओं और कोर्ट के फैसले की पूरी Inside Story!

Published on: 04-08-2025
Elephant Mahadevi in Vantara

कोल्हापुर में एक हाथिनी को लेकर इन दिनों भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है। महादेवी, जिसे लोग प्यार से ‘माधुरी’ भी कहते हैं, अब कोल्हापुर के नंदनी गांव की सीमाओं से बहुत दूर, गुजरात के जामनगर स्थित Vantara Wildlife Rescue & Rehabilitation Centre में है। लेकिन क्या यह सिर्फ एक हाथिनी की शिफ्टिंग है? या फिर यह सवाल है उस न्याय का, जिसकी वह लंबे समय से हकदार थी?

महादेवी की कहानी सिर्फ एक जानवर की नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की उस संवेदनशीलता और जड़ता की तस्वीर भी है, जो धार्मिक भावनाओं और पशु कल्याण के बीच झूलती रहती है। महादेवी करीब 33 सालों से कोल्हापुर के श्री जिंसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी जैन मठ में रह रही थी। पर ये रहना किसी खुले जंगल में स्वच्छंद जीवन नहीं था—बल्कि एक solitary concrete shed में कैद ज़िंदगी थी, जिसमें जंजीरें थीं, हथियार थे, और बेहद सीमित हरियाली।

महादेवी को जब तीन साल की उम्र में कर्नाटक से लाया गया था, तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि उसकी पूरी ज़िंदगी एक सीमित दायरे में बीतेगी। गांव में भीख मंगवाने से लेकर धार्मिक processions तक, हर कदम पर उसका इस्तेमाल किया गया। मानसिक तनाव और अकेलेपन ने 2017 में एक भयावह मोड़ ले लिया, जब उसने कथित तौर पर मठ के मुख्य पुजारी की जान ले ली। यह घटना अचानक नहीं हुई थी, बल्कि वर्षों की पीड़ा और तनाव की उपज थी।

Vantara: एक नई शुरुआत या दूराव?

2023-2024 के बीच महादेवी की हालत तेजी से बिगड़ने लगी। उसे foot rot, overgrown toenails, और arthritis जैसी गंभीर बीमारियाँ थीं। वह लगातार सिर हिलाती रहती थी—जो कि मानसिक आघात का संकेत होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित High-Powered Committee (HPC) और Maharashtra Forest Department ने उसकी हालत को देखते हुए उसे Vantara भेजने की सिफारिश की।

16 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महादेवी को जामनगर भेजने का आदेश दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई को बरकरार रखा। कोर्ट ने साफ कहा कि महादेवी का rehabilitation उसकी सेहत के लिए ज़रूरी है और उसे उसी प्राथमिकता से किया जाए।

Kolhapur में विरोध और भावना की टकराहट

कोर्ट के आदेश के बाद भी कोल्हापुर में इस फैसले के खिलाफ ज़बरदस्त विरोध देखा गया। पूर्व सांसद राजू शेट्टी के नेतृत्व में हजारों लोगों ने silent protest march निकाला। स्थानीय नेताओं का मानना है कि महादेवी केवल एक हाथिनी नहीं, बल्कि कोल्हापुर की संस्कृति और भावना की प्रतीक है। बीते कुछ दिनों में हजारों लोगों ने Jio porting protest करते हुए अपने सिम पोर्ट किए और सोशल मीडिया पर #BringBackMahadevi ट्रेंड करने लगा।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अभितकर, सांसद धनंजय महाडिक और धैर्यशील माने ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। दूसरी ओर कांग्रेस के एमएलसी सतेज पाटिल का कहना है कि दो लाख से अधिक लोग महादेवी को वापस लाने के लिए राष्ट्रपति को पत्र भेज चुके हैं।

लेकिन सच्चाई कुछ और भी है…

Vantara, जिसे रिलायंस इंडस्ट्रीज़ द्वारा विकसित किया गया है, कोई साधारण जगह नहीं है। यह करीब 3,000 एकड़ में फैला एक wildlife sanctuary है, जहाँ hydrotherapy, world-class veterinary care, और elephant socialisation जैसी सुविधाएं हैं। यहाँ महादेवी को पहली बार आज़ादी मिली है—बिना हथियारों के, बिना जंजीरों के।

वंतारा ने इंस्टाग्राम पर लिखा:
“It’s not just about treatment; it’s about helping her live life on her own terms.”

महादेवी की प्रारंभिक जाँच में पाया गया कि उसे chronic foot ailments, fractures, और arthritis है। उसके इलाज के लिए एक विस्तृत treatment plan तैयार किया गया है और उसकी diet भी विशेषज्ञ पोषण विशेषज्ञ द्वारा तय की गई है।

Mechanical Elephant का प्रस्ताव

PETA India और FIAPO ने मठ को mechanical elephant देने का प्रस्ताव रखा है ताकि धार्मिक अनुष्ठानों में हाथियों की जगह मानवीय विकल्पों का इस्तेमाल हो सके। इससे न केवल जानवरों की पीड़ा कम होगी, बल्कि इंसानों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

क्या अब महादेवी को मिलेगा न्याय?

महादेवी के लिए न्याय शायद यही है—शारीरिक और मानसिक पीड़ा से मुक्ति। लेकिन क्या कोल्हापुर की भावना, आस्था और जनता की मांग को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा सकता है? यह सवाल अब भी हवा में है।

यह मामला हमें सोचने पर मजबूर करता है—क्या एक पशु की स्वतंत्रता उसके सांस्कृतिक प्रतीक होने से ज़्यादा अहम नहीं होनी चाहिए? क्या इंसानी भावनाएं किसी जानवर के दर्द से बड़ी हैं?

निष्कर्ष:

महादेवी की कहानी सिर्फ एक हाथिनी की कहानी नहीं है, बल्कि वह तमाम उन जानवरों की आवाज़ है जिन्हें पिंजरे में कैद कर हम अपने समारोहों की शोभा बनाते हैं। अगर हमने वास्तव में करुणा सीखी है, तो हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हर जानवर को जीने का अधिकार है—आज़ाद होकर, अपनी शर्तों पर।

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