Consumer Rights in India : DCF और PLA के साथ जानें कैसे होगी आपके अधिकारों की रक्षा!

Published on: 24-08-2025
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Consumer Rights- भारत जैसे विशाल देश में उपभोक्ता अधिकारों का संरक्षण एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। रोज़मर्रा की खरीददारी, सेवाओं का उपभोग और सार्वजनिक उपयोगिताओं के प्रयोग के दौरान उपभोक्ता को कई बार ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जहाँ वस्तु या सेवा दोषपूर्ण निकल जाती है, वादे के अनुसार डिलीवरी नहीं होती, बिलिंग में गड़बड़ी आ जाती है या फिर बीमा क्लेम और अस्पतालों से जुड़ी शिकायतों में देरी होती है। आम आदमी के लिए परंपरागत अदालतों का रास्ता लंबा, महँगा और जटिल है। इसी कारण उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए दो प्रमुख मंच बनाए गए हैं—ज़िला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (DCF) और स्थायी लोक अदालत (PLA)। ये दोनों मंच उपभोक्ता को तेज़, सस्ता और सरल समाधान उपलब्ध कराते हैं।

DCF क्या है

DCF यानी District Consumer Disputes Redressal Commission, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत गठित किया गया है। यह उपभोक्ता विवादों के लिए त्रिस्तरीय ढांचे का पहला चरण है, जिसके ऊपर राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग कार्यरत हैं। DCF का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ता को दोषपूर्ण वस्तु, सेवा में कमी, अनुचित व्यापार प्रथा या भ्रामक विज्ञापन जैसी स्थितियों में प्रभावी और शीघ्र न्याय मिल सके। अधिनियम 2019 ने उपभोक्ता अधिकारों को और सुदृढ़ किया है, क्योंकि इसमें प्रोडक्ट लाइबिलिटी, ई-कॉमर्स विवाद और डिजिटल माध्यमों से हुई लेन-देन की समस्याओं को भी शामिल किया गया है।

DCF के अधिकार-क्षेत्र को दो आधारों पर समझा जाता है। पहला है आर्थिक सीमा, जिसके अनुसार ज़िला आयोग उन मामलों की सुनवाई करता है जहाँ उपभोक्ता द्वारा वस्तु या सेवा के लिए चुकाया गया विचार पचास लाख रुपये तक हो। राज्य आयोग पचास लाख से दो करोड़ रुपये तक और राष्ट्रीय आयोग दो करोड़ रुपये से अधिक के मामलों की सुनवाई करता है। दूसरा आधार है क्षेत्राधिकार, जिसके अनुसार उपभोक्ता उस ज़िले के आयोग में शिकायत दर्ज कर सकता है जहाँ वह रहता है, काम करता है या जहाँ कारण-ए-कार्रवाई उत्पन्न हुआ हो।

DCF में क्या दायर कर सकते हैं

DCF का दायरा उपभोक्ता से संबंधित लगभग हर प्रकार के विवाद को कवर करता है। इसमें दोषपूर्ण वस्तुओं की बिक्री, सेवाओं में कमी, भ्रामक विज्ञापन, अनुचित व्यापार प्रथाएँ और प्रोडक्ट लाइबिलिटी के दावे शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसी ने घरेलू उपकरण खरीदा और वह वादे के अनुरूप काम नहीं करता, या किसी अस्पताल ने सेवा में लापरवाही बरती, तो उपभोक्ता सीधे DCF का दरवाज़ा खटखटा सकता है।

DCF में शिकायत दर्ज कैसे करें

DCF में शिकायत दर्ज करने के लिए अब ऑनलाइन माध्यम भी उपलब्ध है। सरकार ने e-Daakhil पोर्टल शुरू किया है, जिसके ज़रिए उपभोक्ता घर बैठे अपनी शिकायत दाख़िल कर सकते हैं। पोर्टल पर लॉगिन करने के बाद आयोग का चयन, विवरण भरना, सहायक दस्तावेज़ जैसे बिल और वारंटी कार्ड अपलोड करना और ऑनलाइन फीस जमा करना संभव है। शिकायत दर्ज होने के बाद प्रतिवादी को नोटिस भेजा जाता है, फिर जवाब और साक्ष्य दाख़िल होते हैं, और आवश्यकता पड़ने पर मामला उपभोक्ता मध्यस्थता सेल को भेजा जाता है। यदि मध्यस्थता सफल नहीं होती तो आयोग मेरिट के आधार पर निर्णय देकर राहत प्रदान करता है, जिसमें रिफंड, रिप्लेसमेंट, मुआवज़ा या भ्रामक विज्ञापन रोकने का आदेश शामिल हो सकता है।

शिकायत की समय सीमा

उपभोक्ता को ध्यान रखना चाहिए कि शिकायत कारण-ए-कार्रवाई की तारीख से दो वर्ष के भीतर दायर करनी अनिवार्य है। यदि देरी हो जाए तो आयोग उचित कारण पाए जाने पर विलंब को क्षमा कर सकता है। DCF के आदेश के विरुद्ध तीस दिन के भीतर राज्य आयोग में अपील की जा सकती है और आदेश का प्रवर्तन सिविल डिक्री की तरह किया जाता है।

PLA क्या है?

अब बात करते हैं PLA यानि Permanent Lok Adalat या PLA की, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत गठित संस्था है। PLA विशेष रूप से सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से जुड़े विवादों के लिए बनाई गई है। सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में परिवहन, डाक, टेलीफोन और इंटरनेट, बिजली, पानी, बीमा और अस्पतालों जैसी सेवाएँ शामिल हैं। PLA की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अदालत में मुकदमा दायर होने से पहले ही विवादों को निपटाने का मंच प्रदान करता है, जिसे प्री-लिटिगेशन कन्सिलिएशन कहा जाता है।

PLA का अधिकार-क्षेत्र और प्रक्रिया

PLA का आर्थिक अधिकार-क्षेत्र आज एक करोड़ रुपये तक है। इसकी संरचना में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं। कार्यवाही की शुरुआत आवेदन से होती है जिसे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में दायर किया जाता है। PLA पहले पक्षों के बीच सुलह कराने की कोशिश करता है। यदि सुलह सफल हो जाती है तो तुरंत अवार्ड पारित कर दिया जाता है, जो सिविल डिक्री की तरह बाध्यकारी होता है। यदि सुलह असफल हो जाती है, तो PLA धारा 22C(8) के तहत मेरिट पर निर्णय देने का अधिकार रखता है। PLA का आदेश अंतिम और बाध्यकारी होता है और इसके विरुद्ध सामान्य अपील का प्रावधान नहीं है।

PLA में कौन से मामले दायर होते हैं

PLA का दायरा सीमित है और यह केवल सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से जुड़े मामलों को सुनता है। बिजली और पानी के बिल विवाद, बीमा क्लेम में देरी या विवाद, अस्पतालों द्वारा दी गई सेवाओं की शिकायतें, टेलीफोन या इंटरनेट सेवाओं की गड़बड़ी और परिवहन सेवाओं में लापरवाही जैसे मामले PLA के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, आपराधिक प्रकृति के असमझौतायोग्य मामलों को PLA में नहीं सुना जाता।

क्या DCF और PLA में वकीलों की आवश्यकता है ?

DCF और PLA दोनों को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि आम उपभोक्ता या शिकायतकर्ता बिना वकील के भी आसानी से न्याय पा सके। इन मंचों में वकील रखना अनिवार्य नहीं है। उपभोक्ता स्वयं e-Daakhil पोर्टल या PLA कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं और अपना पक्ष रख सकते हैं। लेकिन जटिल मामलों जैसे मेडिकल नेग्लिजेंस, बीमा पॉलिसी विवाद या प्रोडक्ट लाइबिलिटी के दावों में वकील की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वकील न केवल सही ड्राफ्टिंग और साक्ष्य प्रस्तुत करने में मदद करते हैं, बल्कि अपील की स्थिति में भी उनकी विशेषज्ञता आवश्यक होती है। PLA में अक्सर साधारण बिलिंग विवाद या सेवा से जुड़ी शिकायतें बिना वकील के सुलझ जाती हैं, लेकिन जटिल मामलों में वकीलों की उपस्थिति न्याय को और मज़बूत बनाती है।

DCF और PLA में अंतर

DCF उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 पर आधारित है और यह उपभोक्ता से जुड़े हर प्रकार के विवादों की सुनवाई करता है, जिसमें आर्थिक सीमा ज़िले स्तर पर पचास लाख रुपये तक है। PLA विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत आता है और इसका दायरा केवल सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं तक सीमित है, जिसकी आर्थिक सीमा एक करोड़ रुपये तक है। DCF में अपील की व्यवस्था है, जबकि PLA का आदेश अंतिम और बाध्यकारी होता है। यही कारण है कि DCF व्यापक उपभोक्ता मंच है और PLA विशेषीकृत प्री-लिटिगेशन समाधान मंच है।

DCF और PLA दोनों ही उपभोक्ता न्याय के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। यदि उपभोक्ता किसी वस्तु या सेवा से असंतुष्ट है, दोषपूर्ण प्रोडक्ट मिला है या भ्रामक विज्ञापन का शिकार हुआ है, तो DCF सही मंच है। वहीं यदि विवाद सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से जुड़ा है और अदालत में केस दायर करने से पहले तेज़ और सस्ता समाधान चाहिए, तो PLA सर्वोत्तम विकल्प है। दोनों ही मंच उपभोक्ता-मित्र हैं और इनकी कार्यवाही अपेक्षाकृत सरल है। वकील रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन जटिल मामलों में वकील की विशेषज्ञता उपभोक्ता के लिए लाभकारी हो सकती है। सही मंच का चुनाव और समय पर शिकायत करना उपभोक्ता को न्याय दिलाने की सबसे अहम कुंजी है।

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