Jharkhand Migrant Workers Crisis | 19 मजदूर कैमरून में फंसे, सरकार से लगाई तत्काल मदद की गुहार

Published on: 14-08-2025
Courtesy - Lokmat Times

पश्चिम अफ्रीकी देश कैमरून में झारखंड के बोकारो और हजारीबाग जिलों के 19 प्रवासी मजदूर पिछले कई महीनों से फंसे हुए हैं। ये मजदूर एक निजी एजेंसी के माध्यम से बिजली ट्रांसमिशन से जुड़े रोजगार के लिए कैमरून गए थे, लेकिन उनके नियोक्ता ने पिछले चार महीनों से वेतन नहीं दिया है। परिणामस्वरूप, वे भोजन, पानी और अन्य बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो संदेशों में मजदूरों ने अपनी दयनीय स्थिति का वर्णन किया है और केंद्र तथा राज्य सरकार से तत्काल बचाव और स्वदेश वापसी की अपील की है। एक मजदूर ने वीडियो में कहा, “हम दान पर निर्भर हैं। अगर कोई बीमार पड़ जाए तो इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।” इस घटना ने एक बार फिर प्रवासी मजदूरों की विदेश में दुर्दशा को उजागर किया है, जहां वे ऊंची कमाई के लालच में फंस जाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली ने सरकार से कूटनीतिक कदम उठाने की मांग की है और कहा है कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि झारखंड में रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत है ताकि मजदूरों को मजबूरन पलायन न करना पड़े।

ये 19 मजदूर बोकारो और हजारीबाग के ग्रामीण इलाकों से हैं, जहां गरीबी और बेरोजगारी ने उन्हें विदेश जाने के लिए मजबूर किया। कैमरून पहुंचने के बाद, वे बिजली ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, लेकिन नियोक्ता की ओर से वेतन न मिलने से उनकी स्थिति बद से बदतर हो गई। 11 मजदूरों को चार महीने से और शेष 8 को दो महीने से वेतन नहीं मिला है। परिणामस्वरूप, वे भोजन और पानी के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। वीडियो में दिखाया गया है कि मजदूर एक खुले मैदान में बैठे हुए अपनी कहानी सुना रहे हैं, जहां वे कहते हैं कि वे दान पर जीवित हैं और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं है। कुछ रिपोर्ट्स में उल्लेख है कि गिरिडीह जिले के मजदूर भी शामिल हैं, लेकिन मुख्य रूप से बोकारो और हजारीबाग के नाम सामने आए हैं। इस स्थिति ने उनके परिवारों को भी चिंता में डाल दिया है, जो झारखंड में उनके सुरक्षित वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सिकंदर अली ने कहा कि ऐसे मामलों में सरकार को तुरंत दखल देना चाहिए, क्योंकि देरी से मजदूरों की जान खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने पिछले घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि कई बार मजदूरों को लंबी वार्ताओं के बाद ही वापस लाया जा सका है।

फंसे मजदूरों की पहचान की गई है, जिसमें बोकारो जिले से प्रेम टुडू (चिलगो), सिबोन टुडू (चिलगो), सोमर बेसरा (करी खुर्द), पुराण टुडू (करी खुर्द), रामजी हांसदा (बडकी सिधाबारा), विरवा हांसदा (बडकी सिधाबारा), महेंद्र हांसदा (बडकी सिधाबारा) और बब्लू सोरेन (पोखरिया) शामिल हैं। वहीं, हजारीबाग जिले से आघनू सोरेन (भेलवारा), अशोक सोरेन (खरकी), चेतलाल सोरेन (खरकी), महेश मरांडी (खरकी), रामजी मरांडी (खरकी), लालचंद मुर्मू (खरकी), फूलचंद मुर्मू (नरकी), बुधन मुर्मू (नरकी), जिबलाल मांझी (चानो), छोटन बासके (टाटीझरिया) और राजेंद्र किस्कू (टाटीझरिया) हैं। ये सभी आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी से जूझते हैं। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो वायरल हो रहे हैं, जहां वे एक साथ बैठकर अपनी अपील कर रहे हैं। न्यूज चैनलों ने इन वीडियो को प्रसारित किया है, जिसमें मजदूरों की दुर्दशा साफ दिखाई दे रही है। परिवार के सदस्यों ने बताया कि एजेंसी ने ऊंची सैलरी का वादा किया था, लेकिन वास्तविकता अलग निकली।

सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली, ने इस घटना को गंभीर बताते हुए सरकार से तत्काल कूटनीतिक कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि झारखंड के मजदूर अक्सर विदेशों में फंस जाते हैं, क्योंकि घरेलू रोजगार की कमी उन्हें जोखिम भरे रास्तों पर धकेलती है। अली ने जोर दिया कि राज्य में रोजगार सृजन पर ध्यान देना चाहिए, ताकि मजदूरों को विदेश न जाना पड़े। उन्होंने नाइजर में अपहरण की घटना का उदाहरण दिया, जहां पांच झारखंड मजदूरों का अब तक कोई सुराग नहीं मिला। ऐसे में, कैमरून मामले में देरी नहीं होनी चाहिए। अली की अपील ने सोशल मीडिया पर भी ध्यान खींचा है, जहां यूजर्स सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

पहली बार नहीं है जब झारखंड के मजदूर कैमरून में फंसे हैं। दिसंबर 2024 में, 47 मजदूर फंसे थे, जिनमें से 11 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हस्तक्षेप से वापस लाया गया। कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जुलाई 2024 में, 27 मजदूरों को बकाया वेतन देकर वापस लाया गया, जिसमें मुख्यमंत्री कार्यालय ने सक्रिय भूमिका निभाई। जनवरी 2025 में, 40 से अधिक मजदूरों की दुर्दशा पर रिपोर्ट आई थी, जहां वे निर्माण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे लेकिन वेतन नहीं मिला। इन घटनाओं से पता चलता है कि एजेंसियां मजदूरों को धोखा देती हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अतीत में ऐसे मामलों में हस्तक्षेप किया है, जैसे 2020 में लद्दाख से मजदूरों को एयरलिफ्ट करना। दिसंबर 2024 में, कैमरून में फंसे 47 मजदूरों के वीडियो वायरल हुए थे, जहां वे भोजन संकट की बात कर रहे थे। सरकार ने तब कंपनी पर दबाव डालकर बकाया भुगतान कराया।

झारखंड में रोजगार की कमी मुख्य समस्या है, जो मजदूरों को विदेश जाने के लिए मजबूर करती है। मार्च 2025 की एक रिपोर्ट में उल्लेख है कि स्वास्थ्यकर्मी और छात्र भी पलायन कर रहे हैं। सिकंदर अली ने कहा कि जब तक स्थानीय स्तर पर नौकरियां नहीं बढ़ेंगी, ऐसी घटनाएं जारी रहेंगी। सरकार को ग्रामीण रोजगार योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।

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