Bar Council of India (बार काउंसिल ऑफ इंडिया BCI) ने दिल्ली की सभी जिला अदालत बार असोसिएशनों की समन्वय समिति से 8 सितंबर से प्रस्तावित अनिश्चितकालीन हड़ताल को तत्काल स्थगित करने या वापस लेने का आग्रह किया है। यह हड़ताल पुलिस कर्मियों के पुलिस स्टेशनों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) के माध्यम से गवाही देने के विवादास्पद प्रस्ताव के विरोध में बुलाई गई है। यह हड़ताल दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के 13 अगस्त के उस अधिसूचना के विरोध में बुलाई गई है, जिसमें पुलिस कर्मियों को पुलिस स्टेशनों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही देने की अनुमति दी गई थी। BCI ने इस मामले पर चर्चा के लिए 08 सितंबर को शाम 5 बजे एक संयुक्त बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव रखा है।
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद दिल्ली उच्च न्यायालय की एक अधिसूचना से शुरू हुआ। 04 जुलाई, 2025 के अपने आदेश में हाई कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की प्रक्रिया तय करते हुए जेलों, फॉरेंसिक विभागों, अभियोजन कार्यालयों और पुलिस स्टेशनों को डिजाइनेटेड स्थलों के रूप में पहचाना। इसके बाद 13 अगस्त, 2025 को दिल्ली के उपराज्यपाल ने एक अधिसूचना जारी कर दिल्ली के सभी पुलिस स्टेशनों को ऐसे स्थल के रूप में अधिसूचित कर दिया। वकीलों ने इसका विरोध किया और आशंका जताई कि इससे पुलिस गवाहों की गवाही की विश्वसनीयता प्रभावित होगी और न्यायिक प्रक्रिया कमजोर पड़ेगी। इसके जवाब में अगस्त में हड़ताल का आह्वान किया गया था, जिसे 28 अगस्त को तब स्थगित कर दिया गया था जब केंद्रीय गृह मंत्री ने बार की चिंताओं को खुले दिमाग से सुनने का आश्वासन दिया था और पुलिस आयुक्त कार्यालय ने स्पष्ट किया था कि सभी हितधारकों को सुने बिना आदेश लागू नहीं किया जाएगा।
हड़ताल क्यों बुलाई गई और फिर वापस लेने का आग्रह क्यों?
4 सितंबर को पुलिस आयुक्त ने एक नया परिपत्र जारी किया, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिसूचना का स्पष्ट उल्लेख किया गया। इस परिपत्र में स्पष्ट किया गया कि केवल ‘औपचारिक पुलिस गवाहों’ (formal police witnesses) की जिरह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाएगी, जबकि ‘महत्वपूर्ण पुलिस गवाह’ (material police witnesses) शारीरिक रूप से (फिजिकल मोड में) ही गवाही देंगे। साथ ही, यदि बचाव पक्ष किसी पुलिस गवाह की शारीरिक उपस्थिति का अनुरोध करता है, तो अध्यक्षता कर रहे न्यायाधीश यथोचित विचार कर उसे शारीरिक मोड में जिरह की अनुमति दे सकेंगे। BCI के अध्यक्ष श्री मनन कुमार मिश्रा ने अपने पत्र में कहा है कि इन प्रावधानों से बार की चिंताओं का समाधान हो गया है और मांग का substantive हिस्सा पूरा हो गया है। इसके बावजूद, समन्वय समिति ने 05 सितंबर के अपने परिपत्र में 8 सितंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान किया, जिसके जवाब में BCI ने हड़ताल वापस लेने और बातचीत का रास्ता अपनाने का आग्रह किया है।
BCI के अध्यक्ष ने अपने पत्र में कहा है कि बार-बार की हड़तालें मुवक्किलों, अंडर-ट्रायल कैदियों और अपराध के पीड़ितों के साथ-साथ उन वकीलों के लिए भी गंभीर कठिनाई पैदा कर रही हैं, जो दिल्ली की अदालतों में अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सिर्फ वर्ष 2025 में ही समन्वय समिति का चौथा या पाँचवां हड़ताल का आह्वान है। उन्होंने याद दिलाया कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना है कि वकीलों को हड़ताल करने या अदालतों का बहिष्कार करने का कोई अधिकार नहीं है। केवल बार काउंसिल, अधिवक्ता अधिनियम के तहत सांविधिक निकाय होने के नाते, अधिवक्ताओं के आचरण को विनियमित करने का अधिकार रखती हैं। इसलिए, राज्य बार परिषदों की मंजूरी के बिना की गई कोई भी सामूहिक अनुपस्थिति वैधता खो देती है और पेशे की विश्वसनीयता को कमजोर करने का जोखिम पैदा करती है। BCI ने एक संयुक्त बैठक में चर्चा को अधिक रचनात्मक रास्ता बताया है।
BCI चेयरमैन के पत्र पर ये रेस्पोंस
डीपीसीसी के प्रवक्ता सुरेंदर चौहान ने बीसीआई के पत्र पर एक सोशल मीडिया पोस्ट में जवाब देते हुए कहा: “सबसे पहले, दिल्ली बार एसोसिएशन भारत का अग्रणी बार है और इसने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विधि विद्वानों को जन्म दिया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पत्र में यह कहना कि डीबीए छोटे-मोटे मुद्दों पर हड़ताल करता है, हमें इस बात का सख्त अपमान लगता है।
क्या आप वास्तव में महसूस करते हैं कि जिस मुद्दे पर आंदोलन किया जा रहा है वह छोटे स्वभाव का है और सभी बार एसोसिएशनों द्वारा दी गई हड़ताल की अपील जरूरी नहीं है? यदि हां, तो कृपया कुछ उदारता दिखाएं और अपने उन ‘बॉस’ को बताएं, जिनकी दया पर आपको राज्य सभा की सीट मिली है, कि दिल्ली ही नहीं बल्कि भारत के वकील पुलिस गवाहों की जिरह के मामले पर कोई समझौता नहीं करेंगे, चाहे वह औपचारिक हो या अनौपचारिक, मुख्य हो या गौण। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही देना निष्पक्ष सुनवाई और पारदर्शिता के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है।
सबूत हमेशा अदालत परिसर की परिधि में और अभियुक्त और उसके वकील दोनों की उपस्थिति में होने चाहिए, अन्यथा नहीं। नहीं तो अपने पद का प्रभाव का उपयोग करके सभी अदालतें बंद करवा दें, और प्रावधान बना दें कि हर पुलिस स्टेशन से एक अदालत चले और वहीं से मुकदमे की सुनवाई हो।
इसके अलावा, अभियोजन निदेशालय का क्या उद्देश्य है? विचार यह है कि पुलिस की ज़ोर-जबरदस्ती पर अंकुश लगाया जा सके और मुकदमा चलाने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी को लाया जाए, तो फिर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जिरह क्यों?
दिल्ली के वकील इसका पूरी तरह से और जमकर विरोध करते हैं।”
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