Atlantic Ocean Nuclear Waste:परमाणु कचरे का समुद्री कब्रिस्तान

Published on: 02-09-2025

Atlantic Ocean Nuclear Waste – अटलांटिक महासागर की गहराइयों में आज भी वह रहस्य छिपा है, जिसे दुनिया ने दशकों तक अनदेखा किया। 1950 के दशक से लेकर 1990 तक यूरोप के कई देशों—फ़्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, स्विट्ज़रलैंड और इटली समेत—ने अपने परमाणु कचरे को समुद्र की तलहटी में फेंक दिया। आधिकारिक अनुमान बताते हैं कि करीब 200,000 रेडियोधर्मी बैरल उत्तर-पूर्व अटलांटिक की गहरी घाटियों (North-East Atlantic Abyssal Plain) में पड़े हुए हैं। इन बैरलों को बिटुमेन और सीमेंट में सील करके समुद्र में डाल दिया गया था, ताकि वे सुरक्षित रहें। लेकिन समय, जंग और गहराई के अत्यधिक दबाव ने इस “समुद्री कब्रिस्तान” को अब एक टिकिंग टाइम बम बना दिया है।

क्यों डाला गया कचरा समुद्र में?

परमाणु ऊर्जा के शुरुआती दौर में जब सुरक्षित निपटान तकनीकें विकसित नहीं हुई थीं, तो महासागर को आसान और सस्ता विकल्प माना गया। समुद्र की गहराइयों को “प्राकृतिक ढक्कन” समझकर वहां लो-लेवल और इंटरमीडिएट-लेवल रेडियोधर्मी कचरे (जैसे प्रोसेस स्लज, दूषित धातु, प्रयोगशाला उपकरण) को फेंक दिया गया। यह सोच उस समय के विज्ञान की सीमाओं और राजनीतिक सुविधा को दर्शाती थी। लेकिन जैसे-जैसे पर्यावरणीय चेतना और विज्ञान आगे बढ़ा, यह स्पष्ट हो गया कि महासागर को डंपिंग साइट बनाना बेहद खतरनाक है।

अंतरराष्ट्रीय नियम: प्रतिबंध कब लगे?

200,000 radioactive barrels dumped in the Atlantic (Pic : Futura Science)

1972 में लंदन कन्वेंशन के ज़रिये महासागर में कचरे की डंपिंग को नियंत्रित करने का ढाँचा बना। शुरुआत में कुछ अपवाद दिए गए थे, लेकिन 1993 में लो-लेवल रेडियोधर्मी कचरे को भी पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। इसके बाद, 1998–1999 में OSPAR कन्वेंशन ने उत्तर-पूर्व अटलांटिक क्षेत्र में डंपिंग पर स्थायी प्रतिबंध लागू कर दिया। यानी नई डंपिंग अब असंभव है, लेकिन पुराने बैरलों का क्या किया जाए—यह सवाल अब भी लटका हुआ है।

2025 का फ्रांसीसी अभियान: NODSSUM

इस साल जून–जुलाई 2025 में फ़्रांस के वैज्ञानिक संस्थान CNRS और Ifremer ने एक ऐतिहासिक मिशन शुरू किया—NODSSUM (Nuclear Ocean Dump Site Survey Monitoring)। रिसर्च पोत L’Atalante से एक अत्याधुनिक ऑटोनॉमस अंडरवॉटर व्हीकल (UlyX AUV) तैनात किया गया, जिसने समुद्र तल का हाई-रिज़ॉल्यूशन मैप बनाया। इस चार हफ़्ते के अभियान में वैज्ञानिकों ने 3,355 बैरल की पहचान और मानचित्रण किया। हालांकि यह संख्या कुल बैरलों की तुलना में बेहद कम है, लेकिन यह एक ठोस शुरुआत है। इन बैरलों में कई पर जंग (corrosion) के निशान पाए गए, जो भविष्य में रिसाव का संकेत हो सकते हैं।

खतरा कितना बड़ा है?

Researchers find more than 1,000 nuclear waste drums in the Atlantic (Pic :dpa)

वैज्ञानिकों के अनुसार तत्काल “परमाणु सुनामी” जैसी कोई स्थिति नहीं है। अब तक के सर्वेक्षणों में किसी भी क्षेत्र में “उच्च-स्तरीय रेडियोधर्मिता” दर्ज नहीं हुई है। लेकिन समस्या यह है कि ड्रम धीरे-धीरे कमजोर हो रहे हैं। अगर धीरे-धीरे रिसाव शुरू हुआ, तो यह स्थानीय तलछटी पर्यावरण और खाद्य-श्रृंखला पर असर डाल सकता है। खासकर सीफ़ूड और मत्स्य उद्योग इससे गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं। यानी खतरा अचानक नहीं बल्कि धीमा और लंबा चलने वाला है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

क्या है अगला कदम?

NODSSUM मिशन का दूसरा चरण 2026 में प्रस्तावित है। इसमें वैज्ञानिक ROVs और मानव-पायलट सबमर्सिबल्स की मदद से बैरलों के बिल्कुल नज़दीक जाकर पानी, तलछट और समुद्री जीवों से नमूने लेंगे। इन नमूनों का विश्लेषण किया जाएगा ताकि यह पता चल सके कि आसपास के पारिस्थितिक तंत्र में सीज़ियम-137, स्ट्रॉन्शियम-90, कोबाल्ट-60, प्लूटोनियम, यूरेनियम और अमेरिकियम जैसे रेडियोन्यूक्लाइड्स किस हद तक मौजूद हैं। यह प्रक्रिया तय करेगी कि खतरा कितना वास्तविक और कितना गंभीर है।

क्या प्लूटोनियम और अमेरिकियम जैसी एक्टिनाइड्स मौजूद हैं?

Photo : IISD

कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि बैरलों में बेहद खतरनाक एक्टिनाइड्स—जैसे प्लूटोनियम और अमेरिकियम—भी बड़ी मात्रा में मौजूद हो सकते हैं। हालांकि अभी तक आधिकारिक वैज्ञानिक रिपोर्ट इसे प्रमाणित नहीं करतीं। यह सही है कि इन तत्वों के ट्रेस बैरलों में मिल सकते हैं, लेकिन “20,000 गुना ज़्यादा” वाला दावा अभी भी वृत्तचित्र या मीडिया के अनुमान पर आधारित है। इसी कारण 2026 की सैंपलिंग मिशन का खास ध्यान इन एक्टिनाइड्स पर होगा।

वैश्विक ध्यान क्यों ज़रूरी है?

यह समस्या केवल यूरोप की नहीं है। महासागर की धारा किसी भी प्रदूषण को हज़ारों किलोमीटर तक फैला सकती है। अगर बैरल रिसाव करते हैं, तो इसका असर न सिर्फ़ तटीय समुदायों पर बल्कि पूरी वैश्विक मत्स्य अर्थव्यवस्था और समुद्री जैव विविधता पर पड़ेगा। इसलिए वैज्ञानिक लगातार अपील कर रहे हैं कि इसे वैश्विक पर्यावरणीय चुनौती की तरह लिया जाए। IAEA और OSPAR ढाँचों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और डेटा-शेयरिंग ही इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं।

टाइमलाइन: अटलांटिक महासागर में परमाणु कचरे की कहानी

Senior Nuclear engineer Randall Grenaas takes a radiation reading Pic Source : Fast Company

1946–1993: यूरोपीय देशों ने अटलांटिक महासागर की गहराइयों में ~200,000 रेडियोधर्मी बैरल डंप किए।

1972: लंदन कन्वेंशन लागू हुआ, जिसने महासागर में डंपिंग को नियंत्रित किया।

1993: लो-लेवल रेडियोधर्मी कचरे की डंपिंग पर वैश्विक प्रतिबंध लगाया गया।

1998–1999: OSPAR कन्वेंशन ने NE अटलांटिक क्षेत्र में स्थायी प्रतिबंध लागू किया।

2025 (जून–जुलाई): NODSSUM मिशन फेज़-1 में 3,355 बैरल की पहचान की गई।

2026 (प्रस्तावित): मिशन फेज़-2 में नमूनों की विस्तृत जांच और रेडियोन्यूक्लाइड्स का विश्लेषण होगा।

अटलांटिक महासागर की तलहटी में पड़े लाखों टन बैरल एक धीमी गति से चलने वाला पर्यावरणीय संकट हैं। यह न तो तत्काल विस्फोटक स्थिति है और न ही केवल यूरोप की समस्या—यह पूरी मानवता की साझा चुनौती है। अच्छी बात यह है कि विज्ञान अब इस संकट को गंभीरता से ले रहा है। लेकिन जब तक वैश्विक स्तर पर ठोस कार्रवाई और पारदर्शी निगरानी नहीं होती, तब तक यह “समुद्री टाइम बम” दुनिया की नींद हराम करता रहेगा।

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