Uttar Pradesh में आर्य समाज मंदिर में अवैध शादियां, Allahabad High Court ने सरकार को दिए जांच के निर्देश

Published on: 28-07-2025
उत्तरप्रदेश में नाबालिगों के विवाह पर हाई कोर्ट की सख्ती

Allahabad High Court ने Uttar Pradesh में आर्य समाज मंदिरों में फर्जी शादियों की बढ़ती संख्या पर गंभीर चिंता जताई है, जो अंतरधर्मीय विवाह कराने के साथ-साथ नाबालिग लड़कियों की शादियाँ भी करा रहे हैं। कोर्ट ने यूपी प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलिजन एक्ट, 2021 और यूपी मैरिज रजिस्ट्रेशन रूल्स, 2017 का उल्लंघन करते हुए इन मंदिरों द्वारा जारी किए जा रहे शादी प्रमाणपत्रों पर सवाल उठाए हैं।

याचिकाकर्ता सोनू उर्फ शाहनुर द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस प्रशांत कुमार ने यह टिप्पणी की। सोनू ने पॉक्सो एक्ट के तहत चल रहे मामले को रद्द करने की मांग की थी। आरोपी ने दावा किया था कि उसने 2020 में प्रयागराज के एक आर्य समाज मंदिर में पीड़िता से शादी की थी, जबकि वह उस समय नाबालिग थी। कोर्ट ने कहा, “यह स्पष्ट है कि आवेदक और पीड़िता अलग-अलग धर्मों से हैं। मौजूदा कानून के तहत बिना उचित धर्म परिवर्तन के यह विवाह नहीं हो सकता था।”

ये है पूरा मामला

मामला महाराजगंज जिले के निछलौल थाने में 15 फरवरी 2020 को दर्ज हुई एक एफआईआर से शुरू होता है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी नाबालिग बेटी को सोनू उर्फ शाहनुर ने कुछ अन्य लोगों की मदद से अगवा कर लिया था। इस मामले में आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 366 (विवाह के लिए अपहरण) और 376 (बलात्कार) के साथ-साथ पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

24 जुलाई 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार ने इस मामले की सुनवाई की। आरोपी सोनू ने 12 सितंबर 2024 के समन आदेश और संबंधित मामले की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। आरोपी सोनू के वकील परमेश्वर यादव ने अदालत में दलील दी कि उनके मुवक्किल ने 14 फरवरी 2020 को पीड़िता से विवाह किया था और वह वयस्क होने के बाद उसके साथ रहने लगी थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) का हवाला देते हुए मामला रद्द करने की मांग की।

वहीं राज्य की ओर से पेश एडिशनल जनरल एडवोकेट एन.के. उपाध्याय ने इस दावे का जोरदार खंडन किया। उन्होंने बताया कि पीड़िता के स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार वह उस समय नाबालिग थी। प्रयागराज के एक आर्य समाज मंदिर में हुए इस विवाह को उन्होंने अवैध बताते हुए कहा कि चूंकि दोनों अलग-अलग धर्मों से थे, इसलिए यूपी धर्म परिवर्तन निषेध कानून 2021 के तहत बिना धर्म परिवर्तन के यह विवाह मान्य नहीं हो सकता। राज्य ने यह भी आरोप लगाया कि विवाह प्रमाणपत्र जाली है।

कोर्ट का सख्त रुख, जानिये क्या कहा

कोर्ट ने कहा, “यह स्पष्ट है कि आवेदक और पीड़िता अलग-अलग धर्मों से हैं। मौजूदा कानून के तहत बिना उचित धर्म परिवर्तन के यह विवाह नहीं हो सकता था।”

कोर्ट ने एक पुराने मामले (रिट-सी नंबर 22491/2024) का हवाला देते हुए कहा, “कुछ लोग खुद को आर्य समाज से जोड़कर बुरे इरादों से अवैध शादियाँ करा रहे हैं, जिनमें वर-वधू की उम्र तक की जाँच नहीं की जाती।” आदेश में खुलासा हुआ कि राज्य भर में ऐसी शादियों की संख्या चौंकाने वाली है। कोर्ट ने जोर देकर कहा, “यूपी में सभी विवाहों का पंजीकरण 2017 के नियमों के तहत अनिवार्य है। यहाँ शादी पंजीकृत नहीं हुई और पीड़िता नाबालिग थी – जो इसे अमान्य बनाता है।”

आरोपी द्वारा पेश किए गए आर्य समाज विवाह प्रमाणपत्र की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा, “यह दस्तावेज जाली लगता है।” राज्य सरकार ने बताया था कि “लड़की के स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार वह नाबालिग थी और 2021 एक्ट के तहत बिना धर्म परिवर्तन के अंतरधर्मीय विवाह मान्य नहीं हो सकता।”

तत्काल कार्रवाई का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा, “गृह सचिव, यूपी सरकार, डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस या उससे ऊपर के अधिकारी द्वारा इस मामले की जाँच कराएँ।” अधिकारी को यह पता लगाना होगा कि “कौन इन शादियों को करा रहा है – कभी-कभी नाबालिगों की भी – और अवैध रूप से प्रमाणपत्र जारी कर रहा है।” 29 अगस्त 2025 तक इसकी रिपोर्ट पेश करनी होगी।

रजिस्ट्रार (अनुपालन) को तुरंत आदेश लागू करने के निर्देश दिए गए। यह फैसला विशेष रूप से नाबालिगों से जुड़े मामलों में शादी और धर्म परिवर्तन विरोधी कानूनों का दुरुपयोग करने वाले धार्मिक संस्थानों पर बढ़ती न्यायिक निगरानी को दर्शाता है।

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