AI की मदद से केरल पर्यटन विभाग ने ओणम विशेष अभियान के तहत ‘मोना लिसा’ को नया अवतार दिया लेकिन अब इस ‘स्टेट ऑफ हार्मनी’ ने एक अनूठा और विवादास्पद मोड़ ले लिया है। विभाग ने दुनिया की सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग, लियोनार्डो दा विंची की ‘मोना लिसा’ को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से एक मलयाली महिला का रूप दिया गया। इस AI-जनरेटेड छवि में मोना लिसा की मांग में सिंदूर, बालों में जूही के फूल, गहने और पारंपरिक कसव साड़ी देखी जा सकती है।
हालांकि इसे एक रचनात्मक प्रयास के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन कानूनी और शैक्षणिक विशेषज्ञों ने मूल कलाकार के ‘नैतिक अधिकारों’ (Moral Rights) पर सवाल उठाए हैं। यह पेंटिंग 1503 से 1506 के बीच बनाई गई थी और इसे पेरिस के लौवर संग्रहालय में रखा गया है।
मनोरमा ऑनलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक तिरुवनंतपुरम स्थित सीएसआईआर-एनआईआईएसटी के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक और बौद्धिक संपदा प्रबंधन के विशेषज्ञ आर एस प्रवीण राज ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा, “कोई भी कलाकार नहीं चाहेगा कि उसके काम को मृत्यु के बाद भी विकृत या बदला जाए। यह सिर्फ आर्थिक अधिकारों के बारे में नहीं है, नैतिक अधिकार भी मायने रखते हैं। क्या हम आज पूनथानम नंबूदिरी की कविताओं को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं? मोना लिसा के साथ समस्या यह है कि दा विंची के कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हैं जो चिंता जता सकें। लेकिन क्या उत्तराधिकारियों की अनुपस्थिति हमें उनके काम को बदलने का अधिकार देती है?”
राज ने भारतीय कॉपीराइट अधिकार अधिनियम, 1957 की धारा 57 का हवाला देते हुए कहा कि यह लेखकों के नैतिक अधिकारों को मान्यता देती है, जो उन्हें अपने काम में विकृति, विदारण या संशोधन को रोकने का अधिकार देती है अगर यह उनकी प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे बिना जाँच के परिवर्तन एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकते हैं।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के एक आईपीआर अटॉर्नी, अधिवक्ता सतीश मुर्ती का इस मामले पर अलग नजरिया है। उनके अनुसार, मोना लिसा अब ‘पब्लिक डोमेन’ में आ चुकी है और कोई भी इसे अपनी इच्छानुसार बदल सकता है। मुर्ती ने कहा, “दा विंची की मृत्यु 1519 में हुई थी, और कॉपीराइट आम तौर पर लेखक के जीवनकाल प्लस 60-70 साल तक रहता है। उनके आर्थिक अधिकार सदियों पहले समाप्त हो गए थे। नैतिक अधिकार व्यक्तिगत अधिकार हैं और एक बार न तो लेखक और न ही उनके उत्तराधिकारी जीवित रहने पर उनका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसलिए, मोना लिसा को कसवु साड़ी में चित्रित करना विकृति नहीं बल्कि अलंकरण है।”
मुर्ती ने तमिल अभिनेता धनुष के उदाहरण का हवाला दिया, जिन्होंने हाल ही में अपनी फिल्म ‘रांझणा’ के AI-जनरेटेट वैकल्पिक क्लाइमेक्स पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में लेखक जीवित है और उसकी बात मान्य है, लेकिन मोना लिसा या टैगोर की लेखन जैसी सदियों पुरानी कृतियों के लिए, जो अब पब्लिक डोमेन में हैं, कोई भी उन्हें पुन: प्रस्तुत या पुनर्व्याख्या कर सकता है। उन्होंने कहा कि जब तक इसे अपमानजनक तरीके से पेश नहीं किया जाता, यह पूरी तरह से कानूनी है।
इस बीच, पर्यटन विभाग के एक प्रेस बयान में कहा गया है कि यह छवि ओणम अभियान का हिस्सा है, जो आगंतुकों को “26 अगस्त से शुरू होकर 5 सितंबर को थिरुवोणम के दिन समाप्त होने वाले केरल के प्रतिष्ठित त्योहार” के दौरान आने के लिए प्रोत्साहित करती है।
पर्यटन सचिव के बिजू को छवि को फिर से बनाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करने में कोई समस्या नजर नहीं आती। उन्होंने कहा, “यह तस्वीर विशेष रूप से हमारे ओणम पर्यटन अभियान के हिस्से के रूप में केरल में अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों को आकर्षित करने के लिए बनाई गई थी। हमने विशेष रूप से मोना लिसा को चुना क्योंकि यह दुनिया भर में तुरंत पहचानी जाने वाली है। अगर इसने बहस या चर्चा छेड़ दी है, तो यह केवल यही दर्शाता है कि हमारी मार्केटिंग रणनीति (जिसे मोमेंट मार्केटिंग के नाम से जाना जाता है) प्रभावी रही है।”
इस प्रकार, केरल की संस्कृति को वैश्विक प्रतीक से जोड़ने का एक रचनात्मक प्रयास एक जटिल कानूनी और नैतिक बहस में बदल गया है, जो पब्लिक डोमेन में मौजूद ऐतिहासिक कलाकृतियों के भविष्य पर सवाल खड़े कर रहा है।
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