मुंबई: एनसीपी (एसपी) के विधायक रोहित पवार ने मंगलवार को महाराष्ट्र भाजपा की पूर्व प्रवक्ता आरती साठे को बॉम्बे हाईकोर्ट का जज नियुक्त किए जाने पर आपत्ति जताई है। आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पिछले महीने की 28 जुलाई को दिल्ली, बंबई, कलकत्ता और कर्नाटक समेत 6 अलग-अलग हाई कोर्ट में न्यायाधीश पद के लिए कई अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की सिफारिश की। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी आर गवई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने तीन अधिवक्ताओं आरती अरुण साठे, अजीत भगवानराव कडेथांकर और सुशील मनोहर घोडेश्वर का नाम बॉम्बे हाई कोर्ट में जज के लिए नामांकित किया है लेकिन आरती अरुण साठे के नाम पर विवाद उठ खड़ा हुआ है।
साठे ने इसके जवाब में कहा कि वह पहले ही पार्टी से इस्तीफा दे चुकी हैं, जबकि महाराष्ट्र भाजपा ने इशारा किया कि कांग्रेस शासन में भी ऐसी नियुक्ति हुई थी। रोहित ने मंगलवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि साठे को 2 फरवरी, 2023 को भाजपा प्रवक्ता नियुक्त किया गया था और उनकी न्यायपालिका में चयन को “लोकतंत्र पर सबसे बड़ा प्रहार” बताया। उन्होंने कहा: सार्वजनिक मंच से सत्ताधारी दल का पक्ष रखने वाले व्यक्ति की न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा आघात है। इसका भारतीय न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। क्या राजनीतिक हस्तियों को सिर्फ़ इसलिए सीधे न्यायाधीश नियुक्त करना कि वे न्यायाधीश बनने के योग्य हैं, न्यायपालिका को राजनीतिक अखाड़े में बदलने जैसा नहीं है?
संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को यह सुनिश्चित करने के लिए अपनाया गया है कि सत्ता पर किसी का नियंत्रण न हो, सत्ता का केंद्रीकरण न हो और नियंत्रण व संतुलन बना रहे। क्या किसी राजनीतिक प्रवक्ता की न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत और बदले में संविधान को पराजित करने का प्रयास नहीं है?
जब किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर आसीन व्यक्ति की पृष्ठभूमि राजनीतिक हो और वह सत्ताधारी दल में एक पद पर हो, तो कौन गारंटी देगा कि न्याय प्रक्रिया राजनीतिक पूर्वाग्रह से नहीं चलेगी? क्या किसी राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति न्याय प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाएगी?
नियुक्त व्यक्ति की योग्यता पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन संबंधित व्यक्ति की नियुक्ति करते समय आम लोगों की यह भावना आहत हो रही है कि ‘न्याय बिना किसी निवेश के आम नागरिकों के लिए है।’ परिणामस्वरूप, संबंधित राजनीतिक व्यक्ति की न्यायाधीश पद पर नियुक्ति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। आदरणीय मुख्य न्यायाधीश महोदय भी इस संबंध में मार्गदर्शन करें। और इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की।
एनसीपी (एसपी) नेता ने कहा कि केवल जज बनने की योग्यता रखने से राजनीतिक हस्तियों को सीधे न्यायिक पदों पर नियुक्त करना उचित नहीं है। “क्या यह न्यायपालिका को राजनीतिक अखाड़ा बनाने का प्रयास नहीं है?” उन्होंने पूछा। “एक राजनीतिक प्रवक्ता को जज नियुक्त करना संवैधानिक सिद्धांतों के साथ विश्वासघात है और संविधान पर हमला है।” रोहित ने इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश का मार्गदर्शन भी मांगा।
शिवसेना उद्धव गुट के सांसद संजय राउत ने कहा, आरती साठे की नियुक्ति न्यायपालिका के लिए दुर्भाग्य की बात है। देश की न्यायपालिका को नियंत्रित करने की भाजपा की साजिश है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा के लोग न्यायपालिका में चुने जा रहे हैं।
आरती साठे के पिता अरुण साठे भी एक जाने-माने वकील हैं। वे RSS और BJP से जुड़े रहे हैं। पूर्व में वे BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रह चुके हैं। प्रदेश बीजेपी मीडिया सेल प्रभारी नवनाथ बान ने कहा कि आरती साठे कुछ साल पहले ही BJP प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे चुकी हैं। उनका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं था। इसलिए उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में उनकी साख पर सवाल उठाने का कोई कारण नहीं है।
Connect with us at mystory@aawaazuthao.com