Supreme Court ने जारी किए दिशा-निर्देश: देश भर के Beggars’ Homes को अब ‘सजा घर’ नहीं, ‘पुनर्वास केंद्र’ बनना होगा

Published on: 14-09-2025
Supreme Court

Supreme Court ने देश भर में याचक गृहों (Beggars’ Homes) की दयनीय स्थितियों में बदलाव लाने और उन्हें मानवीय बनाने के लिए ऐतिहासिक और व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह फैसला दिल्ली के लंपुर याचक गृह में दूषित पानी पीने से कई लोगों की मौत की घटना की सुनवाई के दौरान सुनाया गया।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने जोर देकर कहा कि याचक गृहों को दंडात्मक हिरासत केंद्रों के बजाय पुनर्स्थापनात्मक (Restorative) स्थानों के रूप में विकसित होना चाहिए, जो संवैधानिक मूल्यों, विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन के अधिकार का सम्मान करें।

पीठ, जिसकी अगुवाई न्यायमूर्ति पारदीवाला कर रहे थे, ने कहा, “भिखारी गृहों की कल्पना अर्ध-दंडात्मक सुविधाओं के रूप में नहीं की जा सकती है। उनकी भूमिका प्रतिशोधात्मक नहीं, बल्कि पुनर्स्थापनात्मक होनी चाहिए – ये ऐसी जगहें हों जहां बेसहारा लोगों का पुनर्वास, कौशल निर्माण और समाज में पुनर्एकीकरण हो। ‘गृह’ शब्द अपने आप में सुरक्षा, गरिमा, अपनत्व और देखभाल का द्योतक है।”

अदालत ने आगे चेतावनी देते हुए कहा, “कोई भी व्यवस्था जो जेल जैसे माहौल में बदल जाती है – जहां भीड़भाड़, अस्वच्छ परिस्थितियां, मनमाना या अनैच्छिक कारावास, चिकित्सा उपचार से वंचित रखना, मानसिक स्वास्थ्य जरूरतों की उपेक्षा, या व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध हो – वह केवल एक नीतिगत विफलता नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 21 के बहुत दिल पर प्रहार करने वाला एक संवैधानिक उल्लंघन है।” पीठ ने गरीब लोगों को अपराध की दृष्टि से देखने की मानसिकता से दूर जाने पर जोर दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा, “याचक गृहों के लिए एक paradigm shift (पैराडाइम शिफ्ट) की जरूरत है – इन्हें सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के स्थानों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।” अदालत ने पुनर्वास के लिए एक संवेदनशील और संवैधानिक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।

पीठ ने भीख मांगने विरोधी कानूनों की औपनिवेशिक जड़ों का पता लगाते हुए कहा कि ये कानून एक दंडात्मक विरासत को दर्शाते हैं जिसने गरीबी का अपराधीकरण किया, न कि उसे संबोधित किया।

अदालत ने कहा, “ऐसे गृहों में मानवीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने में विफलता केवल कुप्रशासन नहीं है; यह गरिमा के साथ जीवन के मौलिक अधिकार का एक संवैधानिक उल्लंघन है।”

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख दिशा-निर्देश इस प्रकार हैं:

  1. स्वास्थ्य देखभाल: प्रत्येक व्यक्ति का भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर अनिवार्य चिकित्सा स्क्रीनिंग होनी चाहिए। सभी निवासियों का मासिक स्वास्थ्य जांच हो, बीमारी निगरानी प्रणाली लागू हो, और शुद्ध पेयजल, काम करने वाले शौचालय और कीट नियंत्रण सहित सख्त स्वच्छता मानकों का पालन हो।
  2. बुनियादी ढांचा: हर दो साल में स्वतंत्र बुनियादी ढांचा ऑडिट कराना अनिवार्य होगा। अधिकृत सीमा के भीतर ही क्षमता रखने का निर्देश देकर भीड़भाड़ पर रोक लगाई गई है। उचित वेंटिलेशन और खुली जगह तक पहुंच के साथ सुरक्षित आवास सुनिश्चित करना होगा।
  3. पोषण: प्रत्येक भिखारी गृह में एक योग्य डायटिशियन की नियुक्ति करनी होगी जो नियमित रूप से भोजन की गुणवत्ता और पोषण मानकों की जांच करे। मानकीकृत आहार प्रोटोकॉल तैयार किए जाएंगे।
  4. कौशल विकास: आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास केंद्र स्थापित किए जाएंगे। विविध प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और निजी संस्थानों के साथ साझेदारी की जाएगी और निवासियों की पुनर्वास प्रगति को ट्रैक करने के लिए नियमित आकलन किया जाएगा।
  5. कानूनी सहायता: निवासियों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में सुलभ भाषा में सूचित किया जाना चाहिए। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के पैनल वकील हर तीन महीने में भिखारी गृहों का दौरा करेंगे।
  6. विशेष प्रावधान: महिलाओं और बच्चों के लिए अलग सुविधाएं सुनिश्चित की जाएंगी, जिसमें गोपनीयता और सुरक्षा हो। भीख मांगते पाए गए बच्चों को भिखारी गृहों के बजाय बाल कल्याण संस्थानों में रखा जाएगा।
  7. जवाबदेही: निगरानी समितियों को वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी और स्वास्थ्य घटनाओं का रिकॉर्ड रखना होगा। लापरवाही के कारण मौत की स्थिति में मुआवजा और दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्रवाई शुरू की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त दिशा-निर्देशों को छह महीने के भीतर लागू करने का निर्देश दिया है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को तीन महीने के भीतर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक समान कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए मॉडल दिशा-निर्देश तैयार करने और अधिसूचित करने का आदेश दिया गया है। अदालत के रजिस्ट्री को सख्त अनुपालन के लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव को इस फैसले की एक प्रति भेजने को कहा गया है।

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