उदयपुर में जानवर प्रेमी राजस्थान हाईकोर्ट के हालिया आदेश के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। जोधपुर स्थित राजस्थान हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को एक आदेश पारित कर सभी नगर निगमों को सार्वजनिक स्थानों, सड़कों और हाईवे से stray dogs और अन्य पशुओं को हटाने का निर्देश दिया था। इस आदेश के विरोध में उदयपुर में रविवार शाम को एक शांतिपूर्ण कैंडल मार्च और विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जायेगा जिसमें सैकड़ों पशु प्रेमियों हिस्सा लेंगे। इस मार्च का आयोजन स्थानीय पशु अधिकार कार्यकर्ता रूपिना रानी और अन्य संगठनों द्वारा किया जा रहा है।
यह मार्च शाम 5 बजे आयोजित होगा और इसका मुख्य उद्देश्य हाल के सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट के उन फैसलों के खिलाफ आवाज उठाना है, जिनमें आवारा पशुओं को सड़कों से हटाने के आदेश दिए गए हैं। इस मार्च की अगुवाई कर रही रुपिना रानी ने बताया, “दिनांक 11/8/25 को सुप्रीम कोर्ट व राजस्थान हाईकोर्ट के जजमेंट जिसमें हमारे भारतीय कम्युनिटी के दोस्त और साथी श्वानों व अन्य पशुओं को उठाने का आदेश जारी किया गया था। उसी संदर्भ में हम सभी एकजुट होकर हमारे बेजुबान पशुओं, खासकर हमारे भारतीय श्वानों के लिए आवाज उठाने के लिए एक शांतिपूर्ण कैंडल मार्च व विरोध रखा गया है, जिसमें हम हमारी सरकार और जनता को दिखाएंगे और साबित करेंगे कि कैसे हम जानवरों के प्रति इस गहन क्रूरता का विरोध करते हैं और नसबंदी, टीकाकरण व उनका क्रूरता से बचाव ही एकमात्र समाधान है।” रुपिना ने आगे कहा, “हमारे देश की राजधानी दिल्ली में हमारे जैसे कर्मठ और बिना स्वार्थ के जीवों की रक्षा करने वालों पर भी अत्याचार हो रहा है और श्वानों को बिना किसी कानूनी परिवर्तन के उठाया जा रहा है, जो जायज नहीं है।” यह संदेश सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया जा रहा है और उदयपुर सहित पूरे राजस्थान में पशु प्रेमियों के बीच एकजुटता का प्रतीक बन गया है।

आवारा पशुओं को लेकर क्या है राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश?
राजस्थान हाईकोर्ट ने आवारा पशुओं (विशेषकर कुत्तों) से निपटने को लेकर एक आदेश जारी किया। जोधपुर स्थित हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य के सभी नगर निगमों, एनएचएआई और सड़क परिवहन विभाग को निर्देश दिया है कि वे सार्वजनिक स्थानों, सड़कों और हाईवे से आवारा पशुओं को हटाकर उन्हें शेल्टर या गौशालाओं में पहुंचाएं। इस आदेश से पशु अधिकार कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी है, जो इसे “अमानवीय और अवैज्ञानिक” बता रहे हैं।
हाईकोर्ट की खंडपीठ (जस्टिस कुलदीप माथुर और जस्टिस रवि चिरानिया) ने यह आदेश एक सुविज्ञा याचिका (Suo Motu PIL) पर सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने कहा कि:
- सड़कों पर बढ़ रही समस्या: आवारा कुत्तों के काटने और सड़क दुर्घटनाओं की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जिससे आम नागरिकों को खतरा हो रहा है।
- नगर निगमों की लापरवाही: नगर निगम अपने कानूनी दायित्वों का पालन नहीं कर रहे हैं, जिससे स्थिति बिगड़ी है।
- तत्काल कार्रवाई जरूरी: नगर निगमों को विशेष अभियान चलाकर सड़कों से आवारा जानवरों को हटाना होगा।
मुख्य निर्देश
- स्ट्रे एनिमल्स का रिमूवल: नगर निगम 8 सितंबर (अगली सुनवाई) तक सड़कों से आवारा जानवरों को हटाएं और उन्हें शेल्टर/गौशालाओं में रखें।
- शेल्टर की स्थिति रिपोर्ट: राज्य सरकार को डॉग शेल्टर और गौशालाओं की हालत पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी होगी।
- विरोध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई: अगर कोई व्यक्ति या समूह नगर निगम के कर्मचारियों को रोकता है, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
- हाईवे पर निगरानी: एनएचएआई और राज्य हाईवे प्राधिकरण को सड़कों से पशुओं को हटाने के लिए पेट्रोलिंग बढ़ानी होगी।
विवाद क्यों?
पशु अधिकार समूहों का कहना है कि यह आदेश:
- क्रूरता को बढ़ावा देगा: जानवरों को जबरन उठाने से उनके साथ हिंसा हो सकती है।
- ABC प्रोग्राम की अनदेखी: सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही नसबंदी और टीकाकरण (ABC) को ही समाधान बताया है।
- शेल्टरों की दयनीय स्थिति: अधिकांश शेल्टरों में जगह और संसाधनों की कमी है, जहां जानवरों को रखना उनके लिए और खतरनाक होगा।

स्ट्रीट डॉग्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित जगहों पर रखने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में 14 अगस्त को फिर सुनवाई हुई. गुरुवार को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की नई पीठ ने की. इस नई पीठ में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया शामिल थे. सुनवाई के शुरू होते ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबसे पहले दलीले रखीं. सुनवाई खत्म होने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. गुरुवार से पहले इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की दो सदस्यीय पीठ ने की थी. 11 अगस्त को हुई सुनवाई में कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली-NCR के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखा जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर न छोड़ा जाए. यह आदेश रेबीज और कुत्तों के काटने की गंभीर स्थिति को देखते हुए दिया गया था.
दिल्ली में ऐसे ही अभियानों के दौरान आवारा कुत्तों को क्रूरता से उठाने के वीडियो सामने आए थे। पशु प्रेमियों का आरोप है कि बिना टीकाकरण और नसबंदी के जानवरों को हटाने से समस्या और बढ़ेगी। हाईकोर्ट का आदेश नागरिक सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर आम लोग सड़कों पर कुत्तों के डर से परेशान हैं, वहीं पशु प्रेमियों का मानना है कि समाधान हिंसा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक प्रबंधन है।
मानवीय समाधान की मांग: नसबंदी और टीकाकरण
उदयपुर में कैंडल मार्च के आयोजक और पशु कल्याण संगठन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रमों को और प्रभावी करना चाहिए। भारत में एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) नियम पहले से ही मौजूद हैं, जो कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी और टीकाकरण को प्रोत्साहित करते हैं। हालांकि, इन नियमों का कार्यान्वयन कई शहरों में अपर्याप्त है। पशु प्रेमी मांग कर रहे हैं कि सरकार और नगर निगम इन नियमों को सख्ती से लागू करें और कुत्तों को पकड़ने के बजाय उनकी देखभाल के लिए बेहतर आश्रय स्थापित करें। उदयपुर में यह मार्च न केवल एक विरोध प्रदर्शन है, बल्कि एक सामुदायिक एकजुटता का प्रतीक भी है। आयोजक यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे। यह मार्च यह संदेश देता है कि आवारा कुत्ते समाज के लिए खतरा नहीं हैं, बल्कि उचित प्रबंधन के साथ वे समुदाय का हिस्सा बन सकते हैं।
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