सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली के वर्तमान लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) वी.के. सक्सेना द्वारा 2001 में दायर मानहानि के मामले में उनकी सजा को बरकरार रखा। हालांकि, मेधा पाटकर को एक राहत यह मिली कि कोर्ट ने उन पर लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया और कहा कि उन्हें अब कोर्ट में हर तीन महीने में पेश होने की शर्त पूरी नहीं करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटीश्वर सिंह की पीठ ने नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने से इनकार कर दिया, जिसमें उनकी सजा को बरकरार रखा गया था। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी, लेकिन साथ ही उसने पाटकर पर लगाए गए जुर्माने को हटा दिया और कहा कि उन्हें अब कोर्ट में नियमित रूप से पेश होने की जरूरत नहीं है।
इससे पहले, 29 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने मेधा पाटकर की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी अपील खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट की जस्टिस शालिंदर कौर ने कहा था कि पाटकर ने कोई ऐसी प्रक्रियात्मक खामी नहीं दिखाई, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी हुई हो। कोर्ट ने कहा कि पाटकर की सजा सबूतों और कानून की सही व्याख्या के आधार पर दी गई थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने उन्हें एक राहत देते हुए कहा था कि वह हर तीन महीने में कोर्ट में वर्चुअली पेश हो सकती हैं या उनकी तरफ से कोई वकील हाजिर हो सकता है।
ये है पूरा विवाद
यह मामला 2001 का है, जब वी.के. सक्सेना (जो अब दिल्ली के एलजी हैं) ने मेधा पाटकर के खिलाफ दो मानहानि के मुकदमे दायर किए थे। पहला मुकदमा एक टीवी इंटरव्यू में दिए गए उनके बयान को लेकर था, जिसे सक्सेना ने अपमानजनक बताया था। दूसरा मुकदमा एक प्रेस स्टेटमेंट को लेकर था। इससे पहले, साल 2000 में मेधा पाटकर ने भी सक्सेना के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया था, जिसमें उन पर एनबीए और पाटकर के खिलाफ अपमानजनक विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया था।
पिछले साल जुलाई में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को पांच महीने की जेल की सजा सुनाई थी और साथ ही उन्हें सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। बाद में, साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विशाल सिंह ने पाटकर की सजा को बरकरार रखा, लेकिन उन्हें एक साल के अच्छे आचरण की शर्त पर जमानत पर छोड़ दिया। साथ ही, कोर्ट ने उन्हें एक लाख रुपये का मुआवजा जमा करने का आदेश दिया, जो सक्सेना को दिया जाना था।
साकेत कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि किसी की प्रतिष्ठा के प्रति संवेदनहीनता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मेधा पाटकर खुद एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, इसलिए उन्हें किसी की प्रतिष्ठा का मूल्य पता होना चाहिए। मानहानि से पीड़ित व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए ऐसे मामलों में सजा जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन पाटकर को कुछ राहत देते हुए जुर्माने की राशि को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उन्हें अब हर तीन महीने में कोर्ट में पेश होने की शर्त पूरी नहीं करनी होगी। इस मामले में वी.के. सक्सेना की तरफ से सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह और वकील गजिंदर कुमार, किरण जय, चंद्र शेखर और सोम्या ने पैरवी की। वहीं, मेधा पाटकर की तरफ से सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने कोर्ट में दलीलें पेश कीं।
यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को उजागर करता है।
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