पति से गिफ्ट मिली प्रॉपर्टी बेचने पर भी नहीं लगा कैपिटल गेन्स टैक्स – मुंबई आईटीएटी के फैसले से जानें धारा 54 के फायदे

Published on: 31-07-2025
परिवार में गिफ्ट देने पर टैक्स से छूट

मुंबई आईटीएटी के ऐतिहासिक आदेश ने कविता दमानी के ₹6 करोड़ की गिफ्ट प्रॉपर्टी की बिक्री को कैपिटल गेन्स टैक्स से मुक्त कर दिया। जानें कैसे परिवार के भीतर संपत्ति हस्तांतरण में धारा 54 का लाभ उठाएं और टैक्स बचाएं।

मुंबई की इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला सुनाते हुए कविता दमानी के पूंजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन्स टैक्स) से पूर्ण छूट के दावे को मंजूरी दे दी है। दमानी ने अपने पति से गिफ्ट में प्राप्त मुंबई स्थित दो फ्लैट्स को लगभग 6 करोड़ रुपये में बेचा था। यह फैसला परिवार के भीतर संपत्ति लेनदेन और आयकर अधिनियम की धारा 54 के तहत छूट के संबंध में महत्वपूर्ण स्पष्टता लाता है। ट्रिब्यूनल ने कर अधिकारियों के इस आरोप को खारिज कर दिया कि यह लेनदेन कर चोरी की एक सोची-समझी योजना का हिस्सा था। यह निर्णय संपत्ति मालिकों, विशेषकर उन लोगों के लिए जो परिवार के सदस्यों के साथ उच्च मूल्य की संपत्ति लेनदेन पर विचार कर रहे हैं, के लिए गहरे निहितार्थ रखता है।

इस मामले का केंद्र बिंदु दमानी द्वारा उन फ्लैट्स की बिक्री और उसके बाद मार्च 2021 में अपने ही पति से लगभग 3.85 करोड़ रुपये में एक नए आवासीय संपत्ति की खरीद थी। आयकर अधिकारियों ने आयकर अधिनियम की धारा 54 के तहत उनकी छूट के दावे को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि ये लेनदेन चक्रीय (सर्कुलर) प्रकृति के थे और विशुद्ध रूप से करों से बचने के उद्देश्य से किए गए थे। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने दमानी के पक्ष में तीन निर्णायक कारकों पर जोर दिया। सबसे पहले, फ्लैट्स का स्वामित्व वैध रूप से वर्ष 2017 में पंजीकृत उपहार विलेख (गिफ्ट डीड) के माध्यम से स्थानांतरित किया गया था, जिसने कविता दमानी को इन संपत्तियों का निर्विवाद मालिक बना दिया। यह स्थापित किया गया कि उन्होंने किराये की आय और बिक्री से प्राप्त राशि दोनों को अपने स्वयं के बैंक खातों में प्राप्त किया था और पूंजीगत लाभ का आकलन भी उन्हीं के नाम पर किया गया था। दूसरा, एक नई संपत्ति में उनके पुनर्निवेश ने धारा 54 की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया था – इसमें पंजीकृत बिक्री समझौता, टीडीएस (स्रोत पर कर) कटौती और स्टांप शुल्क का भुगतान जैसे तत्व शामिल थे। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण, जांचकर्ताओं को कोई भी सबूत नहीं मिला जो फंड के गोल-गोल घूमने (फंड रोटेशन) या छिपे हुए उद्देश्यों को साबित करता, जिससे यह पुष्टि हुई कि लेनदेन पारदर्शी और वाणिज्यिक रूप से वास्तविक थे।

इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आईटीएटी ने स्पष्ट किया कि रिश्तेदारों से – जिसमें जीवनसाथी भी शामिल हैं – संपत्ति खरीदना धारा 54 के तहत तब तक कानूनी रूप से अनुमेय है जब तक कि दस्तावेजीकरण और वित्तीय प्रवाह पारदर्शी और उचित हों। यह प्रावधान करदाताओं को पूंजीगत लाभ कर से बचने की अनुमति देता है, बशर्ते कि वे बिक्री से प्राप्त आय को किसी अन्य आवासीय संपत्ति में पुनर्निवेशित करें। इस पुनर्निवेश के लिए समय सीमा निर्धारित है: बिक्री की तारीख से एक वर्ष पहले या दो वर्ष बाद तक नई संपत्ति खरीदी जा सकती है। अगर करदाता नई संपत्ति का निर्माण करवाना चाहता है तो उसके लिए बिक्री की तारीख से तीन वर्ष का समय होता है। एक और महत्वपूर्ण शर्त यह है कि अगर करदाता आयकर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि तक पूंजीगत लाभ की पूरी राशि का पुनर्निवेश नहीं कर पाता है, तो उसे बची हुई राशि को कैपिटल गेन्स अकाउंट स्कीम (सीजीएएस) में जमा करना अनिवार्य है। यह कदम कर छूट को बरकरार रखने के लिए जरूरी है। ट्रिब्यूनल ने कर अधिकारियों के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि यह लेनदेन एक ‘कल्पित युक्ति’ (कलरबल डिवाइस) था, क्योंकि फंड का प्रवाह स्पष्ट और वैधानिक था। कर विशेषज्ञ इस फैसले को संरचित पारिवारिक संपत्ति हस्तांतरण के लिए एक मार्गदर्शक (ब्लूप्रिंट) के रूप में देख रहे हैं। अकॉर्ड ज्यूरिस के प्रबंध साझीदार आलय रज़वी ने कहा कि यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि “पारदर्शी दस्तावेजीकरण और समय सीमा का पालन कर चोरी के आरोपों को निरस्त कर सकता है”। उन्होंने जोर देकर कहा कि परिवार के भीतर संपत्ति लेनदेन को वैध माना जा सकता है अगर वे सभी कानूनी औपचारिकताओं का पालन करते हैं। सिंघानिया एंड कंपनी में प्राइवेट क्लाइंट विभाग के प्रमुख केशव सिंघानिया ने संयुक्त स्वामित्व (जॉइंट ओनरशिप) वाले मामलों पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में प्रत्येक सह-मालिक को अपने हिस्से का भुगतान अपने व्यक्तिगत बैंक खातों से, स्पष्ट आय के स्रोतों के प्रमाण के साथ करना चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक हिस्सेदारी साबित हो सके। उन्होंने कहा कि सिर्फ नाममात्र का हिस्सा (नॉमिनल शेयर) छूट के दावे को समर्थन देने के लिए पर्याप्त नहीं है।

घर मालिकों के लिए, यह फैसला कुछ स्पष्ट सर्वोत्तम प्रथाओं (बेस्ट प्रैक्टिसेज) को उजागर करता है जिनका पालन करके वे धारा 54 के तहत छूट सुरक्षित कर सकते हैं। सबसे पहले, उपहारों को औपचारिक रूप देने के लिए पंजीकृत उपहार विलेख (रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड) का उपयोग करना अनिवार्य है। यह कदम स्वामित्व हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देता है और भविष्य में किसी भी विवाद को रोकता है। दूसरा, लेनदेन को अलग-अलग वित्तीय वर्षों में करना सलाह दी जाती है। इससे लेनदेन की प्रकृति स्पष्ट रहती है और अनावश्यक कर अधिकारियों की जांच से बचा जा सकता है। तीसरा, बैंक स्टेटमेंट और लेनदेन के रिकॉर्ड सहित हर वित्तीय प्रवाह का विस्तृत दस्तावेजीकरण रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वास्तविक स्वामित्व और पुनर्निवेश के इरादे को साबित करने में मदद करता है। चौथा, उपहार के बाद संपत्ति से होने वाली किराये की आय या किसी अन्य आय को प्राप्तकर्ता (डोनी) के नाम पर कराया जाना चाहिए। यह नए मालिक के स्वामित्व को मजबूत करता है। पांचवा, अगर पुनर्निवेश में किसी कारणवश देरी हो रही है, तो कर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले बचे हुए पूंजीगत लाभ को सीजीएएस खाते में जमा करना सुनिश्चित करें। इससे छूट का दावा बरकरार रखा जा सकता है। छठा और सबसे अहम, फंड के गोल-गोल घूमने (राउंड-ट्रिपिंग) से बचना चाहिए। बिक्री से प्राप्त राशि को सीधे नई खरीद के वित्तपोषण के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अस्थायी पार्किंग या रीसाइक्लिंग का कोई सबूत नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे पुनर्निवेश की वास्तविकता पर सवाल उठ सकता है।

यह फैसला उन परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण आश्वासन के रूप में आया है जो उच्च मूल्य की अचल संपत्ति का प्रबंधन कर रहे हैं। दमानी के कर-मुक्त लेनदेन को वैध ठहराकर, आईटीएटी ने इस सिद्धांत को रेखांकित किया है कि धारा 54 की समय सीमा और दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं का उचित पालन ही – न कि पारिवारिक संबंध – कर छूट की पात्रता निर्धारित करते हैं। ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट किया कि रिश्तेदारों के साथ किया गया लेनदेन अपने आप में संदेहास्पद नहीं होता। महत्वपूर्ण यह है कि लेनदेन वास्तविक हो, उसका उचित दस्तावेजीकरण किया गया हो, सभी कानूनी प्रावधानों (जैसे टीडीएस और स्टांप ड्यूटी) का पालन किया गया हो और फंड का प्रवाह पारदर्शी हो।

यह फैसला संपत्ति मालिकों को यह विश्वास दिलाता है कि अगर वे नियमों का सख्ती से पालन करते हैं, तो पारिवारिक सदस्यों के बीच संपत्ति का हस्तांतरण और पुनर्खरीद कर कानूनी रूप से पूंजीगत लाभ कर के बोझ से मुक्त रह सकता है। सामान्य घर मालिकों के लिए इस फैसले के व्यावहारिक निहितार्थ बहुत व्यापक हैं। यह उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शक है जो परिवार के भीतर संपत्ति की योजना (प्रॉपर्टी प्लानिंग) पर विचार कर रहे हैं, जैसे कि जीवनसाथी को संपत्ति उपहार में देना या पति-पत्नी के बीच संपत्ति खरीदना-बेचना। यह फैसला सिखाता है कि कर कानूनों के दायरे में रहकर भी कुशलतापूर्वक संपत्ति प्रबंधन कैसे किया जा सकता है। किसी भी ऐसे लेनदेन में पंजीकृत दस्तावेजों की महत्वपूर्ण भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। चाहे वह उपहार विलेख हो, बिक्री समझौता हो या निर्माण समझौता, पंजीकरण कानूनी वैधता और सबूत की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। इसी तरह, बैंक लेनदेन के रिकॉर्ड और आय का सही विवरण (रेंटल इनकम डिक्लेरेशन) छूट के दावे की रीढ़ की हड्डी साबित होते हैं। सीजीएएस खाते का उपयोग करने की सुविधा उन करदाताओं के लिए राहत लाती है जिन्हें पुनर्निवेश में कुछ समय की देरी हो सकती है, बशर्ते वे समय सीमा का ध्यान रखें।

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