पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर जिले में हड़प्पा सभ्यता ( सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के अवशेष मिले है। यह हड़प्पा कालीन टीला जैसलमेर जिले के रामगढ़ तहसील से 60 किलोमीटर एवं सादेवाला से 17 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में “रातडिया री डेरी“ नामक स्थान पर है जिसकी खोज राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग के शोधार्थी दिलीप कुमार सैनी, पार्थ जगानी (इतिहासकार, जैसलमेर), चतर सिंह ‘जाम’ (रामगढ़) प्रो. जीवन सिंह खरकवाल (राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर), डॉ तमेघ पंवार, (एसिस्टेन्ट प्रोफेसर, इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय) डॉ रविंद्र देवडा (रिसर्च एसीस्टेन्ट, इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग, जयपुर) एवं प्रदीप कुमार गर्ग (रामगढ़) के द्वारा की गई है।
टीम को बधाई देते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि यह खोज विद्यापीठ ही नही देश के लिए भी अच्छी खबर है। संस्थान निरंतर उत्खनन के माध्यम से नित नयी खोज करता रहता है। इससे पूर्व आबू रोड स्थित चंद्रावती की खोज भी संस्थान द्वारा ही की गई है। जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय उदयपुर में स्थित एक समविश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना अंग्रेजी राज के समय राष्ट्रीय जागरण के उद्देश्य से पण्डित जनार्दन राय नागर द्वारा १९३७ में की गयी थी। इसे १९८७ में मानद विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ।

यह पुरास्थल अपने आप में एक अनूठा एवं हड़प्पा सभ्यता में खोजे गए पुरास्थलों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है क्योंकि उतरी राजस्थान एवं गुजरात के बीच में राजस्थान के थार इलाके के खोजा गया यह पहला पुरातात्विक स्थल है। इस महत्वपूर्ण हड़प्पा सभ्यता की बस्ती से नगरीय सभ्यता से मिलने वाले सभी अवशेष विद्यमान है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पुरास्थल पाकिस्तान बॉर्डर के पास में स्थित है।
इस पुरास्थल पर भारी मात्रा में खंडित मृदभांड यत्र तत्र बिखरे हुए है जिसमें हड़पा सभ्यता के नगरीय स्तर से संबंधित लेप उक्त लाल मृदभांड, लाल मृदभांड, कटोरे, घड़े, परफोरेटेड जार के टुकड़े आदि है। पाकिस्तान में स्थित रोहड़ी से प्राप्त होने वाले चर्ट पर निर्मित लगभग 8 से 10 सेमी तक लंबाई के अनेक ब्लेड यहां से प्राप्त हो रही है। इसके साथ ही यहां से मिट्टी से निर्मित चूड़ियां, शंख से निर्मित चूड़ियां, त्रिकोणकार, गोलाकार, इडली नुमा टैराकोटा केक मिल रहे है। सामान को पीसने एवं घिसने से संबंधित अनेक पत्थर मिल भी मिल रहे है। इस हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल के दक्षिणी ढलान पर एक भट्टी मिली है जिसके बीच में एक कॉलम बना हुआ है। इस प्रकार की भट्ठियां गुजरात के कानमेर, मोहनजोदड़ो आदि से प्राप्त होती है।
इस पुरास्थल से वेज प्रकार की ईंट प्राप्त हो रही है जिससे यह पता चलता है कि यह ईंट गोलाकार भट्ठियां एवं गोलाकार दीवार बनाने में काम आती होगी इसके साथ ही नगरीय सभ्यता से संबंधित सामान्य ईंटें भी प्राप्त हो रही है।
थार में हड़प्पा कालीन अवशेष पहली बार प्राप्त हुए है। यह पुरास्थल सुदूर थार के रेतीले टीबों के बीच में स्थित है जो रेगिस्तान के कठिन जीवन एवं हड़प्पा सभ्यता के राजस्थान में विस्तार को बताता है।
हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) भी कहा जाता है, प्राचीन भारत की एक प्रमुख सभ्यता थी। यह लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1800 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई और इसका विस्तार आज के पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत के क्षेत्रों में था. हड़प्पा सभ्यता अपनी शहरी नियोजन, उन्नत जल निकासी प्रणाली, और व्यापारिक गतिविधियों के लिए जानी जाती थी. सिंधु सभ्यता का नाम सिंधु नदी प्रणाली के नाम पर रखा गया है जिसके जलोढ़ मैदानों में सभ्यता के प्रारंभिक स्थलों की पहचान की गई और खुदाई की गई।
1920 के दशक में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दयाराम साहनी और राखल दास बनर्जी ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में खुदाई शुरू की, जिससे इस प्राचीन सभ्यता के बारे में जानकारी सामने आई.
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