झालावाड़ स्कूल हादसा : विपक्ष और जनता के सुलगते सवाल – क्या गलतियों से सीख लेगी राजस्थान सरकार?

सरकार ने किया मुआवजे का ऐलान, मृतक बच्चों के परिजनों को दिए जाएंगे 10-10 लाख रूपए, बच्चों के एक परिजन को दी जाएगी संविदा पर नौकरी, कक्षा कक्षों का नाम मृतक बच्चों के नाम पर रखा जाएगा।

राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में 25 जुलाई को एक सरकारी स्कूल की बिल्डिंग के ढहने से सात बच्चों की मौत और 28 अन्य के घायल होने की दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। गांव में शनिवार को गहरा शोक छा गया, जहां स्कूल भवन ढहने की दर्दनाक घटना में मारे गए सात बच्चों में से छह का एक साथ दाह संस्कार किया गया।

एक बच्चे को अंतिम संस्कार के लिए पास के चंदपुरा भीलन गांव ले जाया गया। सुबह-सुबह पिपलोड़ी में छह बच्चों के शव पहुंचने पर हाहाकार मच गया। शोक की खामोशी को दिल दहला देने वाले चीत्कारों ने तोड़ दिया, जब दुखी परिवार और ग्रामीण मासूमों को अंतिम विदाई देने के लिए इकट्ठा हुए।

यह हादसा न केवल एक त्रासदी है, बल्कि राजस्थान की बीजेपी सरकार के लिए एक गंभीर प्रश्नचिह्न बन गया है। सामाजिक मीडिया पर इस घटना को लेकर व्यापक आक्रोश देखा जा रहा है, जिसमें विशेष रूप से आदिवासी समुदाय के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सरकार की लापरवाही को उजागर किया है। एसपी और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में, शवों को सुबह 5:00 बजे परिवारों को सौंप दिया गया। मनोहर थाना अस्पताल से मृतकों को अलग-अलग वाहनों में उनके घरों तक पहुंचाया गया। शवों के आगमन के साथ ही गांव का माहौल अस्त-व्यस्त हो गया, क्योंकि हर घर में दुख का साया था। शवों के आने से पहले ही दाह संस्कार की तैयारियां शुरू हो गई थीं।

भारी पुलिस बल की मौजूदगी में अवशेषों को जल्दी से हादसे की जगह के पास श्मशान घाट ले जाया गया। एक दर्दनाक पल तब आया जब भाई-बहन कान्हा और मीना के शवों को एक ही बांस पर ले जाया गया। छहों बच्चों का अंतिम संस्कार श्मशान घाट पर पांच चिताओं पर किया गया। मृतकों के पिताओं ने चिताओं को अग्नि दी, और जैसे ही लपटें ऊपर उठीं, आंसुओं का सैलाब छलक पड़ा।

सातवें बच्चे का दाह संस्कार चंदपुरा भीलन गांव में किया गया। पिपलोड़ी गांव शोक और गुस्से में डूबा हुआ है। दो परिवारों में एकलौते बच्चे की मौत हो गई, जबकि एक अन्य में दोनों बच्चों की जान चली गई। अधिकांश मृतक 7 से 10 साल के बीच के थे और गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते थे। कई माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, जो अब अपने बच्चों के खोने से टूट चुके हैं।

घटना के बाद संवेदनशीलता दिखाते हुए, राजस्थान सरकार ने मारे गए सात बच्चों के परिवारों को 10 लाख रुपये के मुआवजे और एक अनुबंधित नौकरी देने की घोषणा की है।

नवनिर्मित स्कूल भवनों में कक्षाओं का नाम मृत छात्रों की याद में रखा जाएगा। शिक्षा और पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर ने झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में घायल बच्चों से मुलाकात की।दिलावर ने कहा, “मैं इस घटना की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं।” प्रारंभिक जांच के बाद, शिक्षा विभाग ने स्कूल के प्रधानाध्यापक मीना गर्ग सहित पांच शिक्षकों को निलंबित कर दिया। जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौर ने कहा कि शिक्षा विभाग को जर्जर स्किंकूल भवनों की सूची तैयार करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन इस स्कूल का नाम उस सूची में शामिल नहीं था। इस बीच, घटना के बाद जनता का आक्रोश तेज हो गया। मनोहरथाना के बुराड़ी चौराहे पर प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने पुलिसकर्मियों पर पथराव किया, जिससे पुलिस वाहनों को नुकसान पहुंचा।

भयावह घटना यूं घटी

25 जुलाई की सुबह लगभग 7:45 बजे मनोहरथाना ब्लॉक के पिपलोदी गांव में स्थित सरकारी उच्च प्राथमिक स्कूल की इमारत का एक हिस्सा अचानक ढह गया। इस हादसे में कक्षा 6 और 7 के लगभग 35 बच्चे मलबे में दब गए। पुलिस और स्थानीय लोगों के अनुसार, सात बच्चों की मौत हो गई, जिनमें से पांच की पहचान पायल (14), प्रियंका (14), हरीश (8), सोना भाई (5), और मिथुन (11) के रूप में हुई। शेष दो बच्चों की पहचान कन्हा (7) और मीना (8) के रूप में हुई, जो सगे भाई-बहन थे। इसके अलावा, 28 बच्चे घायल हुए, जिनमें से नौ की हालत गंभीर बताई गई।

स्थानीय लोगों ने बताया कि स्कूल की इमारत 30-40 साल पुरानी थी और लंबे समय से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी। बारिश के कारण छत में रिसाव होने की बात भी सामने आई, जिसके चलते बच्चों को सुबह की प्रार्थना के लिए बाहर न भेजकर कक्षा में ही रखा गया था। कुछ बच्चों ने छत से ईंटें और पत्थर गिरने की शिकायत शिक्षकों से की थी, लेकिन उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया गया। एक छात्र ने बताया, “हमने सर को बताया कि छत से पत्थर गिर रहे हैं, लेकिन उन्होंने हमें चुपचाप बैठने को कहा।” इसके बाद छत ढह गई, जिससे यह भयावह हादसा हुआ।

हादसे के तुरंत बाद, स्थानीय लोग और शिक्षक मलबे में फंसे बच्चों को निकालने के लिए दौड़े। ग्राम सरपंच राम प्रसाद लोधा ने अपने पेलोडर की मदद से बचाव कार्य में सहायता की। हालांकि, स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि एम्बुलेंस को घटनास्थल पर पहुंचने में 45 मिनट का समय लगा, जिसके कारण कई घायल बच्चों को मोटरसाइकिल पर अस्पताल ले जाना पड़ा।

सामाजिक और राजनीतिक आक्रोश

इस हादसे ने राजस्थान में शिक्षा व्यवस्था और सरकारी ढांचे की बदहाली को उजागर किया। स्थानीय लोगों ने प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया। हादसे के बाद पिपलोदी और आसपास के गांवों के निवासियों ने मनोहरथाना के बुरारी चौराहे पर प्रदर्शन किया और पुलिस पर पथराव किया, जिसके कारण पुलिस वाहनों को नुकसान पहुंचा। पुलिस को प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठियां भांजी।

सोशल मीडिया विशेष रूप से एक्स पर, इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। लोग सरकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार पर सवाल उठा रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस घटना को बीजेपी सरकार की नाकामी का प्रतीक बताया। ट्राइबल आर्मी के फाउंडर हंसराज मीणा ने एक पोस्ट में लिखा: मंदिरों के लिए बजट मिल जाता है। किलो के जीर्णोद्धार के लिए फंड आ जाता है। विदेश यात्राओं पर करोड़ों खर्च हो जाते हैं लेकिन सरकारी स्कूलों की जर्जर इमारतों के लिए कभी बजट नहीं आता! क्यों?

मीणा ने यह भी आरोप लगाया कि घायल और मृतक बच्चों में से 99% बच्चे अनुसूचित जनजाति से थे, जबकि बाकी दलित और ओबीसी समुदाय से आए थे। यह हादसा केवल एक प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि एक गहरी जातिवादी व्यवस्था की पोल खोलता है, जिसमें आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों के बच्चों की ज़िंदगी को दोयम दर्जे का माना जाता है। भजनलाल शर्मा की सरकार की नीतियाँ और प्राथमिकताएं साफ़ दिखाती हैं कि समाज के सबसे वंचित तबकों की सुरक्षा, शिक्षा और जीवन इनकी सूची में सबसे आख़िर में हैं। मंदिरों और धार्मिक आयोजनों पर करोड़ों लुटाने वाली सरकार के पास स्कूल की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देने का समय और संसाधन नहीं है। यह हादसा एक चेतावनी है कि अगर सरकारें अपनी जातिवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकलेंगी, तो सबसे ज़्यादा क़ीमत हमारे बच्चे चुकाते रहेंगे। भजनलाल सरकार को इस अमानवीय लापरवाही के लिए नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।

लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने अपने पोस्ट के जरिये घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा- “राजस्थान के झालावाड़ में सरकारी स्कूल की छत गिरने से कई मासूम बच्चों की मौत और कई अन्य का घायल होना बेहद दुखद और चिंताजनक है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जर्जर स्कूलों की शिकायतों को सरकार ने अनदेखा किया, जिसके कारण इन मासूमों की जान गई है। इनमें से अधिकांश बच्चे बहुजन समाज के थे – क्या BJP सरकार के लिए उनकी जान की कोई कीमत नहीं है? इस घटना की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए।

विधायक थावरचंद डामोर ने कहा, ” झालावाड़ के मनोहर थाना क्षेत्र में स्कूल की जर्जर छत ढहने से मासूम बच्चों की जान चली गई—ये हादसा नहीं, बल्कि शिक्षा मंत्री जी और राजस्थान सरकार की घोर लापरवाही का परिणाम है! सवाल सरकार से है कि मंदिर निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च कर सकती है, लेकिन स्कूलों की जर्जर हालत सुधारने और बच्चों की सुरक्षा के लिए बजट क्यों नहीं? 2024-25 में शिक्षा पर केवल 19.5% बजट आवंटन, जो अन्य राज्यों के औसत (14.7%) से अधिक है, फिर भी स्कूलों की दयनीय स्थिति बरकरार! मंदिरों की चकाचौंध के लिए फंड की कमी नहीं, लेकिन बच्चों की जान की कीमत क्या यही है? तत्काल स्वतंत्र जांच, दोषियों पर कठोर कार्रवाई और शिक्षा मंत्री का इस्तीफा जरूरी! जनता अब चुप नहीं रहेगी!”

कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र पाल गौतम ने कहा, ” यह सरकार धर्म के नाम पर वोट बटोरने के नाम पर हजारों करोड़ रूपए खर्च कर सकती है किन्तु स्कूल की बिल्डिंग बनाने पर पैसे खर्च नहीं करेगी ! कांवड़ियों पर फूल बरसाएगी किन्तु उनके बच्चों की स्कूल की बिल्डिंग बनाने की बजाय, मर्जर करके उनके स्कूल बन्द करेगी !”

नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक शिक्षक बताते हैं कि , ” हर साल कम से कम 3 से 4 बार तो जीर्णोद्धार कराने योग्य कमरों की सूचना मांगी जाती हर बार सूचना भेजी जाती हैं पर आज तक मरम्मत के लिए सरकार ने बजट नहीं दिया । यही हालात अन्य सरकारी विद्यालय के भी जो बजट के लिए सरकार की तरफ देखते हैं, पर बजट नहीं दिया जाता है। इसी प्रकार झालावाड की घटना पर भी सरकारी विद्यालय के स्टाफ को जिम्मेदार ठहराकर खाना पूर्ति करके खुद का बचाव करेगी सरकार व उच्च स्तरीय अधिकारी या नेता पर सबक लेकर बजट नहीं दिया जाएगा। बस अधिकारी आए दिन आएंगे बस भामाशाह तैयार करो ये करो वो करो करके प्रेशर क्रिएट करेंगे। पर इनको कौन समझाए लोग 15 अगस्त या 26 जनवरी को 10 रु तक नहीं देते है, कौन भामाशाह बनके स्कूल बिल्डिंग बनवा देंगे. वैसे ही अधिकतर ग्रामीण को पैसे नहीं होते हैं।”

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