STATE Vs. UNTRACE: 2007 में मर्डर और आजतक हत्यारों का कोई अता पता नहीं! दिल्ली पुलिस की लापरवाही पर अदालत ने फटकारा

Published on: 12-07-2025
Delhi Crime

मामला 30 जुलाई 2007 को अजमेरी गेट के मोहन होटल में हुई एक 30-35 वर्षीय युवक की हत्या से जुड़ा है। हैरानी की बात यह है कि इनक्वेस्ट होने के बावजूद, तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने न तो समय पर एफआईआर दर्ज की और न ही कोई जांच शुरू की।

अगर आम लोगों से पूछा जाए की वे किस डिपार्टमेंट से सबसे ज्यादा त्रस्त है तो जवाब होगा – पुलिस महकमा! जिस पुलिस पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने और अपराधों को रोकने की जिम्मेदारी है, वही जब अपने कर्तव्यों को भूलकर लापरवाही बरतती है, तो सिस्टम के प्रति आम इंसान का भरोसा डगमगाने लगता है। लेकिन जब न्यायपालिका इस लापरवाही पर चाबुक चलाती है, तो उम्मीद की किरण जागती है।

ऐसा ही एक सनसनीखेज मामला दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में सामने आया, जहां सत्र न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को 18 साल पहले हुए एक क्रूर हत्याकांड में 10 साल की देरी से एफआईआर(FIR No.260-2016)दर्ज करने और फिर जांच में घोर लापरवाही बरतने के लिए कठघरे में खड़ा किया। यह कहानी है एक गुमनाम युवक की, जिसकी हत्या की सच्चाई को दबाने की कोशिश की गई, और यह सवाल उठाती है कि आखिर सिस्टम आम आदमी के साथ कितना नाइंसाफी कर सकता है। कोर्ट ने हत्या से लेकर एफआईआर दर्ज होने तक कमला मार्केट थाने में तैनात सभी SHO, जांच अधिकारी (IO) और ACP की सूची पेश करने का आदेश दिया है, ताकि इस शर्मनाक लापरवाही की जड़ तक जाया जाए।

क्या है मामला

दिल्ली की अदालत ने 2007 में हुए एक हत्या मामले में दिल्ली पुलिस की चौंकाने वाली लापरवाही और उदासीनता को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। यह मामला, जो एक आम आदमी की जान लेने के बाद पुलिस की निष्क्रियता और संभावित मिलीभगत को उजागर करता है, सिस्टम की खामियों को बेनकाब करता है। 8 जुलाई 2025 को तीस हजारी कोर्ट में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (जेएमएफसी) भारती बेनीवाल ने क्रिमिनल केस नंबर 4555-2021 (स्टेट बनाम अनट्रेस, एफआईआर नंबर 260-2016, पीएस कमला मार्केट) में सुनाए गए अपने फैसले में दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए।

यह मामला 30 जुलाई 2007 को अजमेरी गेट के मोहन होटल में हुई एक 30-35 वर्षीय युवक की हत्या से जुड़ा है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतक के गले पर रस्सी का निशान और सिर के पीछे गंभीर चोट थी, जो स्पष्ट रूप से हत्या की ओर इशारा करते हैं। हैरानी की बात यह है कि इनक्वेस्ट होने के बावजूद, तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने न तो एफआईआर दर्ज की और न ही कोई जांच शुरू की। गवाहों- चंदर मोहन, मोहम्मद आलम, वीरेंद्र शर्मा और भुवन के बयानों से पता चलता है कि मृतक मोहन होटल में काम करता था और उसकी हत्या होटल परिसर में ही हुई। सबूत छिपाने के लिए शव को पास के नाले में फेंक दिया गया। फिर भी, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “यह मामला अत्यंत परेशान करने वाला है और पुलिस मशीनरी की ओर से एक जघन्य हत्या के मामले में पूरी तरह से उदासीनता और घोर लापरवाही को उजागर करता है।” अदालत ने यह भी नोट किया कि पर्याप्त सबूत-गवाहों के बयान, पोस्टमार्टम निष्कर्ष और अपराध स्थल की जानकारी होने के बावजूद, तत्कालीन SHO और ACP ने कोई कार्रवाई नहीं की। 2016 में, हत्या के नौ साल बाद, जब एफआईआर दर्ज की गई, तब भी जांच के नाम पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अदालत ने इसे “मात्र औपचारिकता” करार देते हुए कहा कि “कमला मार्केट पुलिस स्टेशन में तैनात अधिकारियों का आचरण अत्यंत संदिग्ध है और यह या तो जानबूझकर निष्क्रियता या अपराधियों को बचाने की साजिश प्रतीत होता है।”

2016 में दर्ज की FIR

सेवानिवृत्त ACP दिनेश कुमार, जो 15 जून 2016 से 31 जुलाई 2017 तक कमला मार्केट पुलिस स्टेशन के SHO थे, ने अदालत में बताया कि उन्होंने पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड की समीक्षा के दौरान इनक्वेस्ट रिपोर्ट देखी और DCP सेंट्रल से एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मांगी। लेकिन अदालत ने गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि पुलिस ने पूरा रिकॉर्ड अदालत के सामने पेश नहीं किया। यहाँ तक कि एफआईआर दर्ज होने के बाद भी, न तो गवाहों से पूछताछ की गई और न ही संदिग्धों तक पहुँचा गया।

इस मामले ने एक आम आदमी के साथ हुए अन्याय को उजागर किया है। मृतक, जो संभवतः मोहन होटल में एक साधारण कर्मचारी था, न केवल क्रूर हत्या का शिकार हुआ, बल्कि उसे जांच का हक भी नहीं मिला। अदालत ने अब DCP सेंट्रल को हत्या की तारीख से लेकर एफआईआर दर्ज होने तक कमला मार्केट पुलिस स्टेशन में तैनात सभी SHO, इंस्पेक्टर इन्वेस्टिगेशन और ACP की सूची पेश करने का आदेश दिया है। साथ ही, जॉइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, सेंट्रल रेंज, को इस मामले की जाँच करने, जिम्मेदारी तय करने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय व कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले की जाँच पुलिस अधिकारियों की संभावित मिलीभगत के दृष्टिकोण से की जाए।

तीन सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश देते हुए, मामले की अगली सुनवाई 2 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है। यह मामला न केवल एक व्यक्ति की हत्या की कहानी है, बल्कि उस सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है जो आम आदमी की रक्षा के लिए बना है। यह उन अनगिनत लोगों की आवाज है जो सिस्टम की उदासीनता और भ्रष्टाचार के शिकार होते हैं। क्या इस मामले से पुलिस सुधार और जवाबदेही की दिशा में कोई कदम उठेगा, या यह भी एक और भुला दी गई कहानी बनकर रह जाएगा?

अपनी शिकायत साझा करें, हमें mystory@aawaazuthao.com पर ईमेल करें।

यह भी पढ़ें:

Aawaaz Uthao: We are committed to exposing grievances against state and central governments, autonomous bodies, and private entities alike. We share stories of injustice, highlight whistleblower accounts, and provide vital insights through Right to Information (RTI) discoveries. We also strive to connect citizens with legal resources and support, making sure no voice goes unheard.

Follow Us On Social Media

Get Latest Update On Social Media